Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 77
________________ जागृत होता है (सी) वह (अचिरेण कालेग) शीघ्र काल में हो ! सिद्धलीय सोक्ख) सिलोक के सुख को (गायदि) प्राप्त करता है | ७७ || अर्थ - जो जी इस प्रकार स्वयं पद प्रतिस्थापना महोत्सव की शुद्ध होकर करता है व करवाता है वह अचिरेण शीघ्र काल में ही सिद्ध लोक के सुख को पाना है ॥ ७७ ॥ भावार्थ - यहां पद प्रतिष्ठापन के फल का निरूपण करते हुए भद्रबाहु आचार्य कहते हैं कि आं जीव नर स्वयं अपने अन्दर राग द्वेषादि क्रोध मानादि विकारो परिणामों का परिवार करते हुए स्वयं शुद्ध होकर आचार्य पद परिष्ठापन करता है अथवा - महा महोत्सव को हमें पूर्वक करवाता है वह नर सिंह लोके रखत नियोध, सात.....४ बहुत अत्यल्प कारन में ही पा लेता है अर्थात् सिद्ध पद को पाता है ।। ७७ ।। - विहार परिचर्या पंच सय पिच्छहत्थो अह चटु तिग दोणि हत्थो । संघ वइ हु सीसो, अज्जा पुणु होदि पिच्छकरा ॥ ७८ ॥ अन्वयार्थ - ( पंचसय ) पांच सौ (पित्थो) मयूर पिच्छीधारी (अ) अथवा ( चंदु चार (तिग) तीन ( दोणि) दो या (हत्थों) एक विद्रधारी होते हैं। ( संघष‍ हु) संघपति भी (आचार्य) (सीमा) शिष्य होता है। ( अज्जा पुगु) अजिंका भी (पिच्छक), पिच्छी धारक ( होंदि) होती है ॥ ३८ ॥ { } अर्थ - वर आचार्य पांच सौ पिच्छ धारी/ शिष्य सहित अथवा चार अथवा तीन वाद वा एक मिछि धारी शिष्य को लेकर विहार करता है। संपति भी उसका शिष्य होता है और आर्यिका भी पिच्छी धारण करती है ॥७८॥ भावार्थ - यहां पर ग्रन्थकार संघ सम्बन्ध निर्देश करते हैं कि वह संधिपति आचार्य जो कि संघ नायक कहलाता है वह अपने साथ ५०० पिच्छिधारी साधुओं को अपने साथ लेकर विचरण करता है अथवा चार, सोन, अथवा दो या एक गिछि धारी साथ की अपने साथ लेकर विहार करता है ग्रन्थकार के इन शब्दों से स्पष्ट हो जाता है कि एक आचार्य भी अपने साथ अन्य साधु को साथ में रखकर बिहार करता है। इनके लिए भी एक विहार मान्य नहीं था तो सामान्य साधु की तो बात ही क्या। क्योंकि भगवत. कुन्दकुन्दाचार्य ने तो यहां तक अपनी प्रशस्त लेखनी से कह दिया कि यदि मंग शत्रु भी हो तो मुनि एकाकी बिहार न करें। संयुक्त सूरि विहार क्रम का वर्णन करने के बाद आचार्य श्री ने उल्लेख किया है कि संघपति: संघ संचालक भी आचार्य का शिष्य होता है उसके आज्ञा में चलता है और आर्यिका भी गच्छ धारण करती है अर्थात् आर्यिका को भी पिच्छी धारण करना अनिवार्य है हर अवस्था में ऐसा ग्रन्थकार के उक्त वाक्य से स्पष्ट हो जाता है। 81 VAR

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