Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ करें। पाय मुनिराज आचार्य को वन्दना करते हैं तय सम्जन कमाल पन दिवाकर आचार्य, ऋदि गौरव, रस गौरव एवं मात गौरव रहित होकर हाथ में पिनि लेकर नमोस्तु, कह कर प्रति वन्दना करें। सर्वत्रापि क्रियारंभे वन्दना-प्रतिवन्दने। गुरु शिष्यस्य साधुनां तथा मार्ग दिदर्शने ५५/८ ।। अ. अ. अर्थात् सभी निय-नैमित्तिक कृतिकर्म के प्रारम्भ में शिष्य को आचार्य की पनदना करनी चाहिए और उसके उत्तर में आचार्य को शिष्य को वन्दना प्रतिबन्दना करनी चाहिए। हस्तान्तरेणबाधे संफास पमन्जणं पउजतो। जाचेंतो बंदणयं इच्छाकारं कुणइ भिक्खू ।।६११॥ ....... लेणा राखिच्दा रा रहिराण शुद्ध भावेण । किदियम्मकार कस्सवि सवेगं संजर्ण तेण ॥१२॥ घ. अ. म. रा./. अ. अर्थात् बाधा रहित एक हाथ के अन्तर से स्थित होकर शरीर आदि के अन्तर से स्थित होकर भूमि शरीर आदि स्पर्श एवं प्रमार्जन करता हुआ । मुनि वन्दना की याचनाप्रश्न करकं वन्दना करता है. तारपार्थ- साधु, देव गुरु की वन्दना करते समय ''हस्तान्तरंण" एक हाथ की पूरी कम से कम होनी चाहिए। तत्पश्चात् पित्रिका से अपने शरीर एवं भूमि का परिपार्जन करके पुनः प्रार्थना करे कि हे भगवान् ! मैं आपकी चन्दना करूंगा' गुरु की स्वीकृति पाकर भय, आसादन आदि दोषों का परिहार करते हुए, स्थिर चित्त से विनयपूर्वक उनकी वन्दना करें | ___ और कृतिकर्म-वन्दना करने वाले को हच उत्पन्न करते हुए वे गुरु गर्व रहित शुभाष से वन्दना स्वीकार करें । अर्थात् प्रतिवन्दना करते हैं। भावार्थ-जब शिष्य मुनि, आचााय, उपाध्याय आदि गुरुओं की या अपने से बड़े यत्तिगणों को वन्दना करते हैं तो बदले में आचार्य आदि भी ''नमोस्तु" शब्द बोलकर प्रतिवन्दना करते हैं। यही पन्दना को स्वीकृति है। इसी को आचार्य नभर ने वन्दना की विधि विशेष बतलाई है ।१६ || प्रोत्साहन एवं पय परिठ्ठवणं, जो सक्कदि कारिओ सर्य बुद्धो। सो सिद्धलोय सोक्खं, पावदि अचिरेण कालेण॥७॥ अन्वयार्थ-( एवं) इस प्रकार ( पय परिष्ठवणं) सूरिपद की स्थापना फो ( जो) जो (सक्काद) शक्ति युक्त करता है, (कारिओ) कराने में (सयं मुखो) स्वयं बुद्ध-स्वयं VINTAMINATIONATES COMINDIAN 80 TWITTI R THA

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100