Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 92
________________ समय पूर्वाभिमुख पचासन से बैठ जाये और गुरु महाराज उत्तराभिमुख बैठ जाये। फिर दीक्षा लेनेवाला गुरुमहाराज से पूछकर केशलंच करे । शालि मंत्र ॐ नमोऽहते भगवते प्रक्षीणाशेषकल्मषाय दिव्यतेजो मूर्तये श्री शांतिनाथाय शांतिकराय सर्व विघ्नप्रणाशनाय सर्वरोगापमृत्यु विनाशनाय सर्वपरक्त क्षुद्रोपद्रव विनाशनाय सर्व क्षामडामर विनाशनाय ॐ ह्रो ह्रीं हूँ ह्रौं हः असि-आउसा अमुकस्य ....... (यहाँ दीक्षा लेनेवाले का नाम लेवे ) सर्व शांति कुरु कुरु स्वाहा इत्यनेन मन्त्रेण गन्धोदकादिकं त्रिवारं मंत्रयित्वा शिरसि निक्षिपेत् ।। शांतिमंत्रेण गन्धोदकं त्रिपरिषिच्य मस्तकं वाम हस्तेन स्पृशेत् । भावार्थ-इस शान्ति मंत्र को बोलते हुए आचार्य तीन यार दीक्षक के मस्तक पर गन्धोदक डाले और यायें हाथ से दीक्षक के मस्तक को स्पर्श करे । [वद्धमान मंत्र ॐ नमो भयवदो वड्ढमाणस्स रिसहस्स चक्कं जलंत गच्छई आयास लोयाणं जये वा, विवादे वा, थंभणे वा, रणंगणे वा, मोहेण वा, सयजीव सत्ताणं अपराजिदो भवदु रक्ख रक्ख स्वाहा । ॥इति वद्धमान मंत्र || ततोदध्यक्षत गोमय दूवाँकुरान् मस्तके वर्धमान मंत्रेण निक्षिपेत् । भावार्थ-इस वर्धमान मंत्र को बोलकर आचार्य दधि अक्षत गोपयभस्म ६ अंकुर दीक्षक के पस्तक पर डाले । ॐ णमो अर हे ताणं रत्नत्रयपवित्रीकृतोत्तमांगाय न्योतिर्मयाय मतिश्रुतावधीमनःपर्यय केवलज्ञानाय असिआउसा स्वाहा । इदं मंत्रं पठित्वा भस्मपात्र गृहीत्वा कर्पूरमिश्रितं भस्म शिरसि निक्षिप्य निम्ममंत्र उच्चार्य प्रथम केशोत्पाटनं कुर्यात् । उसके बाद पवित्र भस्म-अरण्य कण्डे की राख ग्रहाण करके- (लेकर) ॐणमो अरहे ताणं....इत्यादि । इस मंत्र को पढ़ कर कपूर से मिश्रित राख को मस्तक पर IDIIOHINITION CSI ILAINTAITAITHIRTHRITRA

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