Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 62
________________ अर्थ - प्रतिदिन गुणयुक्त गुणवान, ज्ञानवान योगी जन गणधर गुथित श्रुत का पठन करें पद प्रतिष्ठापना में योग्य शुद्धि करण मंगल स्नान, जिनाभिषेक पूजा आदि योग्य क्रिया करें अथवा गुरु के समीप पुनःपुनः प्रतिवाचना अध्ययन क्रिया करें ॥ ५४ ॥ विशेष यहां आचार्य निर्देश करते हैं कि महापुण्यकारक महोत्सव प्रतिदिन तीर्थंकर परम देव के द्वारा गुथित सूत्रबद्ध ग्रन्थ का पठन करें तथा सूरिं पद प्रतिष्ठापना में करणीय प्रतिदिन मंगल क्रिया जिन प्रतिबिम्ब का अभिषेक आह्वान आदि क्रिया करें। गुरु के समीप बार-बार ग्रन्थों की पांच प्रकार को (वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा आम्नाय धर्मोपदेश वाचना करें ॥ आचारांग पूजोपदेशः जत्थ दिणे पयठवणं, तत्थ रहस्से ससंघ संजुत्तं । आयारंगं पुज्जि वि, सारस्स दसं जुयं पूणं ॥ ५५ ॥ अन्वयार्थ - (जस्थदिणे ) जिस दिन जहां (पयठवणं) सूरिं पद स्थापना करना है ( तत्थ रहस्से ) वहां रहस्य मय स्थान में (दसं जुर्य) दस युग / ४० हाथ प्रमाण शुद्ध स्थान पर (संसंघ संजुत्तं) अपने चुतर्विध संघ सहित ( आचारंग ) आचारांग के (सारस्स) सार को ( पुजिवि ) पूजा करे ॥५५ ॥ अर्थ- जिस दिन जिस स्थान पर सूरि पद स्थापना करना है उस दिन वहां दस युग ४० हाथ प्रमाण शुद्ध भूमि पर अपने सम्पूर्ण संघ सहित आचार अंग की पूजा करें ॥ विशेष-मुनि पद स्थापना दिवस पर ४० हाथ (६० फुट ) शुद्ध भूमि - मल-मूत्र, सूक्ष्म कीट आदि, सूक्ष्म जीव के रहने के स्थान से रहित (बांबी छिद्र आदि से रहित ) शुद्ध भूमि पर अपने यति, ऋषि, मुनि, अनगार अथवा मुनि, आर्यिका श्रावक, श्राविका इस प्रकार चुतर्विध संघ सहित आचारांग की पूजा, भक्ति आराधना आदि करें ॥५५ ॥ पयठवणं जोग किरिया, कम्पं किंच्चा सवग्गं संजुत्तं । आयारंगं जंतं पुणरवि पुज्जिज्ज भक्तिए ॥५६॥ अन्वयार्थ - ( पठवणं) पद स्थान के ( जोग किरिया ) योग्य क्रिया (कम्पं ) कर्म को (किन्स) करके (पुणो सवग्र्ग) पुनः अपने बंधु वर्ग/सर्व संघ ( संजुत्तं ) सहित (आयारंग नंतं) आचारांग यंत्र गणधर यंत्र की ( पुज्जिज्ज) पूजा आराधना (भत्तिए) भक्ति पूर्वक करें ॥५६ ।। अर्थ- सूरिपद स्थापना योग्य (मंगल पूजादि ) क्रिया कर्म करके पुन: अपने संघ सहित आचारांग यन्त्र ( गणधर वलय यन्त्र) की पूजाराधना भक्ति सहित करना चाहिए ॥५६॥३ { 66 }

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