________________
करते हैं, नृत्य करते हैं एवं मंगल गान करते हैं ।।६०१६१
विशेष-बारह इन्द्र और आरह इन्द्राणियां प्रतिष्ठा विधि के अनुसार स्नान करके अपने सर्वांग पर चन्दन का लेप करें, माला पहनें, तिलक लगा, वस्त्र धारण करें, मुकुट धराण करें, यज्ञोपवीत स्वीकार करें, बाजुबंध, अंगूठी तथा कड़े पहनें, हाथ में दण्ड धारण करें। करधनी तथा चरण मुद्रिका पहने इत्यादि वस्त्राभरणों को धारण करके "एवमानंदतः स्तुत्वा शक : पूर्ववदादशत् कृत्वास्फुट नटेत् अर्थात् ये इन्द्र आनन्द से भक्ति" पूर्वक स्तुति स्तोत्र पाठ करते हुए आरिफ साण्ड : गृह का ये .. क्रियाएं इन्द्र इन्द्राणीयां आचार्य के अग्रवर्ती स्थित होकर करते हैं ।६०/६१ ॥
अह आविऊण सव्वे, मंडलमभिवंदिऊण दक्खिणदा। हिंडिवि मंगल दध्वं, फसित्ता सत्न धण्णाणं ॥६२ ।।
जविऊण सत्तवारं, पणवाइम अरिहंत बीय वयं। मय-णक्खर सिरिवण्णं, होमतं सुद्ध बुद्धीए॥६३ ॥
अन्वयार्थ-(अह) इसके बाद (सव्वे) सभी इन्द्र-इन्द्राणी (आविक्रय) आकर (मंडलमभिवंदिकण) मंडल गणधर षलय मंडल व संघ को सम्मुख होकर नमस्कार, मन्दना करके (मंगल दव्य) मंगल द्रव्य को ( फसित्ता) स्पर्श करके (दक्खिणदा हिंडिमि) दक्षिण की तरफ से प्रदक्षिणा देवे पश्चात् (सत्त् धण्णाणं) सप्त धान्यों को ( सत्तबार) सात बार ( पणवाइम) पणवीज (अरिहंत बीज) अरिहंत बीज को (मयणक्खर) मदन अक्षर (सिरियणं) श्री वर्ण और (होमंत) होमन्त्र 'स्वाहा' को (सुद्ध बुद्धीए) शुद्धबुद्धि से (जविकण) जाप करके (बीजवयं) बीज को वपन करें ॥६२१६३॥
अर्थ-अथानन्तर सभी इन्द्र-इन्द्राणो आकर संघ एवं गणधर थलय मंडल के सम्मुख नमस्कार करके, दक्षिण की तरफ से प्रदक्षिणा देते हुए मंगल द्रष्य को स्पर्श करके सप्त धान्यों को पण बीज "ओ" अरिहंत बीज द्वय "अहं '' मदन अक्षर "क्ती" श्री वर्ण "श्री" होमन्त्र "स्वाहा" (ओं अह इसी श्री स्वाहा) इस मंत्र का सात बार शुद्ध चित्त से जापकर बीज वपन करना चाहिए।
तदुक्तं च तस्मिन्नहनि सायान्हे त्वंकुरार्पण मंडपे। मृत्तिका संग्रहो भूत्वा बीजारोपो यथाविधि। प्र. ति.
अर्थात् तीर्थ विधि के दिन मण्डप में आनन्द पूर्वक पृतिका संग्रह करके यथा विधि बीज रोपण करें ॥६२-६३॥
HINDIAE 69 VIATION