Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 40
________________ (च) चौथा (पंचम) पांचवां (सत्तम) सातवां (णय) नवमां {दसमोय) और दसवां (गुरु) शुभ है ॥२५॥ अर्थ-लग्न से तीसर, छठवें, दसवें एवं ग्यारह स्थान ये पंगल और बुध तथा लग्न से चौथा, पांचवें, सातवें, नवमें और दसवें स्थान में गुरु का होना शुभ है ॥२५ ॥ तइओ छठ्ठो णवमो दुवालसो सुंदरो हवे सुक्को। वीओ पंचमगो अठ्ठमो य एक्कारसो य सणी ॥२६॥ अन्वयार्थ-(तइओ) तीसरा (छठो) छठवां ( णवमो) नषमा (दुवालसो) बारहवां (सुक्को) शुक्र (संदरो) सुन्दर (हवे) होता है। (पीओ) दूसरा ( पंचमगो) पांचवां (अनुमोय) आउषां (एकारसो य) और ग्यारहवां (सणी) शनी (सुंदरो) शुभ हैं ॥२६॥ अर्थ-लग्न से तीसरे, छठवें, नव तथा बारहवें स्थान में शुक्र शुभ होता है और लग्न से दूसरे, पांचथे, आठवें तथा ग्यारवें स्थान में शनि मनोहर अर्थात् शुभ है ॥२६ ॥ राशि स्थित ग्रह फल चक्र (गा. २४ से २६ तक ) राशि सूर्य, चन्द्र मंगल, बुध फल रु शुक्र शनि २,५,८,११ ग्रह बल:मज्झिम बलं च किच्चा सणीचरं घिसणयं बलवंत। अबलं सुकं लग्गे ता दिक्खं दिन्ज सीसस्म ॥२७॥ अन्वयार्थ-(सणीचर) शनिचर/शनि को (मझिम बलं) मध्यम यल वाला करके (धिसणयं) बृहस्पति को (बलवंत) बलवान बल वाला बनाकर (च) और (अबलं) बलहीन (सुक्कं) शुक्र हो (ता) उस ( लग्गे) लग्न में (सीसस्स) शिष्य को (दिवलं दिज्ज) दीक्षा देवे ॥२७॥ ज्योतिष शास्त्रानुसारः SEARRRRIORAINITAR 45 MIRRITILIZIIEIRLINES

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