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लग्न सम्बन्धि विशेष ज्ञातव्यः
जड़ लग्गं ण वि लब्भइ, तुरियं कज्जं च जायदे अहवा ।
तो ध्रुव पयच्छयाई, णिच्छल लग्गं गहेयां ॥४५ ॥
अन्वयार्थ - (इ) यदि इस प्रकार (ल) लग्न ( ण वि लब्भइ) नहीं मिले ( अहवा) अथवा (क) दीक्षा कार्य को (तुरिंगं ) शीघ्र ही ( जायदे) करना हो तो ( ध्रुव यच्छयाई) ध्रुव पद छाया से (च्छिल लगां) निश्चल स्थिर लग्न को (गहेयत्वं ) ग्रहण करना चाहिए ॥४५ ॥
अर्थ - यदि इस प्रकार के लग्न न मिले अथवा मिले अपितु यदि दीक्षा का कार्य शीघ्र करना हो तो ध्रुव पद की छाया से निश्चल स्थिर लग्न को ग्रहण करना चाहिए ॥ ४५ ॥
के शुभाशुभ विशेषार्थ - यहां आचार्य प्रवर पूर्व में लग्न, स्थान भाव एवं ग्रह योग बतलाने के पश्चात् इस खास बात को स्पष्ट उल्लिखित करते हैं कि उपर्युक्त गाथाओं में लिखित लग्न यदि न मिले किन्तु मुक्ति का कारणभूत जिनदीक्षा का मांगलिक कार्य यदि शीघ्र ही करना ध्रुव अवश्यम्भावी है तो निश्चित/ स्थिर लग्न-वृष, सिंह, वृश्चिक एवं कुम्भ लग्न को ग्रहण कर लेना चाहिए ||
अन्य पाठभेद से :
राशि लग्न चर
मेल
कर्क
तुला
लग्न फलादेश तालिका
स्थिर
नृप
सिंह
वृश्चिक
द्विस्वभाव
मिथुन
कन्या
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अनु
मोन
मकर
कुम्भ
जघण्य लग्न
उत्तम लग्न
मध्यम लग्न
तिरियद्वियम्मि धुवए, करिज्ज दिक्खा पइठुमाईयं । उद्धठ्ठियम्मि तम्मि हु, करिञ्ज ते हवइ दुमक्खाई ॥४६ ॥
अन्वयार्थ - (तिरिय िर्याम्म) तिर्यग् स्थित ( ध्रुवए) ध्रुत्र पद में (दिक्खा इमाई ) दीक्षा-प्रतिष्ठा आदि (करिज्ज) करना चाहिए (उडियम) उध्वं स्थित ध्रुष पद में यज्ञादिक ( करज्ज) करें (ते) तो वह (दुमखाई) अक्षय वृक्ष / अक्षय चारित्र