Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 57
________________ अन्वयार्थ-(णिम्मले) निर्मल (गामें) गांव में (णयरे) निर्मल नगर में (हिम्मल भूवाल संघे) निर्मल राजा और निर्मल संघ से (संजुत्ते) संयुक्त होने पर (सदहत्थं) शत/१०० हाथ (फासुय भूमीए) प्रासुक भूमि पर (खेत्त) क्षेत्र में मंडप की (परिवहु) संस्थापना करना चहिए ॥४९॥ अर्थ-निर्मल गांव तथा निर्मल नगर में, निर्मल राजा और निर्मल संघ से संयुक्त होने पर सो (१००) हाथ की प्रासुक भूमि पर क्षेत्र-मंडप की संस्थापना करें या आयोजित करन चाहिए ॥१९॥ -१२६-- 720 मण्डप रचना एवं वेदी प्रमाणः विशेष- जिस गांप एवं नगर में जन मानस जिन दीक्षा का विरोध न करे धर्म भावना से परिपूर्ण उस स्थान विशेष को निर्मल गांव तथा निर्मल नगर कहा है । इसी प्रकार जिन दीक्षा का विरोध न करने वाला सम्यादृष्टि राजा तथा चतुर्विध संघ छआयतन UITAR 61 WIT

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