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विद्वानों द्वारा (दुण्णिवि) ये दोनों ही (मंगल महापण कत्तारो) मंगल महात्म्य को करने वाले (मुणेथल्या) मानना चाहिए ॥३८॥
अर्थ-यदि दीक्षा लग्न से चचे भाव में सूर्य, चन्द, मंगल, शुक्र एवं शनि हो सो मध्यम तथा बुध और गुरु ये दोनों ही ग्रह पांचव में हो तो आत्मा के लिए यहा मंगल करने वाले उत्तम जानना चाहिए ॥३८॥
षष्ठम् भावगत ग्रहः ससि रवि कुज गुरु सणिणो, छठे ठाणम्मि रम्मिगा होति। सुक्क बुहापि य छठा, मज्झिम गया केवल शूणं ॥३९॥
अन्वयर्थ-(छट्टे) छठे (ठाणम्मि) स्थान में (ससि रवि कुजगुरु) चन्द, सूर्य, मंगल, गुरु और ( सणिणो) शनि हो तो (रम्मिगा) रम्य/उत्तम (होति) होता है। सुक्क बुझापि य)शुक्र और बुध भी (इरा) छठे स्थान में (मझिम) मध्यम (गया) माना गया है (केवलं णूणं) ऐसा अद्वितीय माना है ॥३९॥
अर्थ-छठे रिपु स्थान में चन्द, सूर्य, मंगल, गुरु, और शनि रम्यमनोहर होते हैं तथा शुक्र और बुध भी छठे स्थान में मध्यम अद्वितीय माना गया है। ॥३९॥
सप्तम् स्त्रीमित्र भावगत ग्रहः सत्तमगो सुरमंतो सुहओ, ससि सुक्क बुह्य मन्झत्था । सणि मंगलाओ Yणं, वजेयव्वा पयत्तेण ॥४०॥
अन्वयार्थ-(सत्तमगो) लान से सातवें भाव में (सुरमंतो) सूरमंत्री बृहस्पति (सुहया) शुभ होता है (ससि सुक्क बहुप) चन्द्र, शुक्र और बुध ( मज्झत्था) मध्यम स्थित माना गया है किन्तु, (सणि मंगलाओ) शनि और मंगल (णूणं) हीना निन्दनीय ( पयत्तेण ) प्रयत्न पूर्वक (वन्नेयव्या) छोड़ देना चाहिए |
अर्ध-सातवें स्त्री स्थान में या मित्र स्थान में वृहस्पति (गुरु) शुभ है, सानवें चन्द्र, शुक्र और बुध पध्यम होते हैं किन्तु शनि और मंगल निन्दनीय हैं, अतः प्रयत्नपूर्वक परिहार करना चाहिए. ४ ॥
अष्टम् मृत्यु भाव गत ग्रहः अइच्च चंद मंगल, बुह गुरु सुक्का विवन्जिया अठ्ठा । मझिमओ मंद गई, णवम्मि सुहावहा एदे ॥४१॥
अन्वयार्थ-( अला) आठवें भाव में (अइच्च) आदित्य/रवि, (चंद मंगल) चन्द्र. मंगल, (बुह गुरु सुक्का) बुध, गुरु और शुक्र (विवज्जिया) परिहार करना चाहिए
HIRAANTIRTAINTIMATA