Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 47
________________ ग्रह दशा लग्नस्थान गत ग्रहः बुह गुरु सुक्को लग्गे, सुहया चंदोदु मज्झिमो लग्गे अंगार सूर सणिणो, मुत्ति गया णासगो, होति ॥३४॥ अन्वयार्थ-(लग्गे) लग्न में (बहु) बुध (गुरु) गुरु तथा (सुषको) शुक्र (सुहया) शुभ होता है। (चंदो दु) चन्द्र भी (लग्गे) लग्न में (मज्झिमो) मध्यम माना गया है (मुत्ति गया) लग्नगत (अंगार) मंगल (सूर) सूर्य तथा ( सणिणो) शनि (णासगो) नाश करने वाला (होंति) होता हैं ॥३४ ॥ अर्थ-लग्न में बध, गुरु और शुक्र शुभ है, लेकिन चन्द्र मध्यम माना जाता है तथा लग्न गत सूर्य, मंगल और शनि चले जाने पर नाशक अशुभ है ॥३४॥ द्वितीय धन भाव/स्थान गत ग्रहः बीआ बुह गुरु सणिणो रम्मा सुक्को हवे परं मझो। कन्जस्स विणासयरा, सणि दिणयरा मंगलादीया ॥३५॥ अन्वयार्थ-(श्रोआ) दूसरे में (बुह-गुरु-सणिणो) बुध, गुरु और शनि (रम्मा) रम्य है किन्तु (सुक्को) शुक्र (मझो) मध्यम (हवे) होता है । (सणि) शनि (दिग्णयरा) तथा दिनकर/सूर्य (मंगलादीया) पंगल आदि (कम्जस्स) कार्य का (विणासयरा) विनाश करने वाला होता है ॥३५॥ अर्थ-दूसरे धन भाष में बुध, गुरु और शनि उत्तम है किन्तु शुक्र सध्यम माना जाता है तथा शनि, और सूर्य मंगलादि कार्य का विनाश करने वाले अशुभ होते हैं ॥३५॥ तृतीय सहज भावगत ग्रहः रवि-ससि-कुज-बुह-सणिणो, सुहया तुझ्या गुरु वि मल्झिमओ। सुक्को तइयो णूणं, दुठ्ठो मुणि भासियं लग्गं ॥३६॥ अन्वयार्थ-(तुझ्या) तीसरे (भाष) में (रवि) सूर्य (ससि) चन्द्र (कुज) मंगल (बुह) बुध (सणिणो) तथा शनि (सुहया) सुभग/शुभ है (गुरु त्रि) किन्तु गुरु (मज्झिमओ) मध्यप माना गया है (सुक्को) शुक्र (तइयो) तीसरा (दुष्ठो) दुष्ट होता है (ऐसा) (लग्गं) सान (मुणि भासियं) मुनि के द्वारा कहा गया है ॥३६॥ अर्थ-तीसरे सहज भाव में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध और शनि शुभ हैं तीसरा गुरु WHAat 52 VIDIO

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