Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 39
________________ लग्न विचार दिक्खा लग्गदो जड़ वाणरिओ रूद संठियो सुहओ । सूरो चंदो विइओ, तइयो छठ्ठो य च रूद्देसु ॥२४॥ अन्वयार्थ - (दिक्खा लग्गदो ) दीक्षा लग्न (आई) यदि (रुद्द संदिओ) रुद्र में स्थित है तो शुभ है। (सूची) और चन्द्र (इ) दसरा (तइओ) तीसरा, (छठ्ठीय) और हड्डा हो तो ( रुद्देसु) स्थान में हो तो शुभ है ॥२४॥ अर्थ-यदि जिन दीक्षा लग्न रुद्र ग्रह में स्थित हो तो सुभग हैं और सूर्य, चन्द्र द्वितीय, तृतीय एवं छठे स्थान हो तो मुनिरुद्र शुभ होता है ॥ २४ ॥ विशेष - यहां गाथा २४ में लग्नादिका वर्णन करते हैं जो कि जिन दीक्षा के योग्य एवं अयोग्य है। सर्व प्रथम उपर्युक्त आये हुए रुद्र ग्रह से क्या तात्पर्य है : ( १ ) लग्न स्थान प्रथम भाव और सप्तम भाव में जो अष्टम स्थान का स्वामी हो इन दोनों में जो बलवान हो वह रुद्र ग्रह है । . (२) इन दोनों अष्टमेशों में दुर्बल भी पाप ग्रह से देखा जाता हो तो वह रुद्र ग्रह कहलाता है । (३) बलवान रुद्र ग्रह की दृष्टि हो तो अल्पायु होता है। ज्योतिष शास्त्रानुसार भाव एंव लग्न दोनों ही १२-१२ होते हैं। भाव १२ (१) तनु/लग्न (२) श्रन (६) रिंग, (७) स्त्री (११) आम (3) सहज / भ्राता (४) सुहाट / सुख ( ५ ) पुत्र (८) मृत्यु ( ९ ) भ्रमं (६०) कर्म (१२) व्यय ॥ लग्न-१२ (१) मेष (२) वृष (३) मिथुन (६) कन्या (७) तुला (८) वृश्चिक (११) कुम्भ (१२) मीन ॥ तइओ छठ्ठो दसमो इक्कारसमो कुजो बुहो य सुहो । लग्गगओ चठ पंचम सत्तम णव दसमो य गुरु ॥ २५ ॥ अन्वयार्थ - (तइओ) तीसरा (छट्टो) छला (दसमो) दसवां ( इक्कारममी) ग्यारहवां (कुञ्जी हो य) मंगल और बुध ( सुहो) शुभ हैं। (लग्ग गओ ) लग्न गत 44 ) (४) कर्क (९) धनु (५) सिंह (१०) मकर

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