Book Title: Kriyasara
Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar
Publisher: Sandip Shah Jaipur

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Page 29
________________ दुर्जन के संसर्ग से लोग संयमी के भी सदोष होने को शंका करते हैं जैसे मद्यालय में बैठकर दूध पीनेवाले ब्राह्मण के भी मधपायी होने की शंका करते हैं । अत: पार्श्वस्थ साधुओं की सेवा, विनय, भक्ति आदि करने वाला पति क्रमशः लज्जा आदि से पाश्वस्थ मग्न हो जाता है फिर चाहे वह पंच प्रकार के वस्त्र से रहित भी क्यों न हो। ऐसा यत्ति अवन्दनीय होता है। पंचनेल को ? पञ्च विधानि पंच प्रकाराणि घेलानि वस्त्राणि-अंडज वा कोशज तसरि वीरम् (1) बोडज वा कपसि वस्त्रं (2) रोमज प ऊर्णामयं वस्त्र एसकोप्ट्रादि रोम वस्त्र (पक्कजं वा वल्कं वृक्षादित्वा भङ्गादि छल्लिवस्त्रं तदादिकं चापि (4) चपंज वा मृगचर्म व्याघ्रचर्म चित्रकचर्म गजचर्मारिकम्..... | भा. पा. __ वस्त्र पांच प्रकार के होते हैं रेशम से उत्पन्न वस्त्र अंडज, कपास से उत्पन्न वोंडज वस्त्र, बकरे ऊंट आदि के बाल से उत्पन्न रोमज वस्त्र, वृक्ष या बेस आदि की छाल से उत्पन्न चर्मज वस्त्र कहलाते हैं। तभी जी देव, धर्म, गुरु आदि मा अपयाद याचिनिया करने वाला तथा विरुद्ध प्रवृत्ति करने वाला यति भी बन्दनीय नहीं है ॥१४॥ संघाचार चत्ता सयकप्पिय किरिकम्म संगहणो। गारव-तय कम सोहो अवंदणिन्जो जई होई ॥१५॥ अन्यथार्थ-जो (संघाचार चत्ता) संघ के आचार को छोड़कर (सयकप्पिय ) स्वयं कल्पित (किरिय कम्म संगहाणो) क्रिया कर्म का संग्रह करने वाला है। (गारवतय कय सोहो) रस, ऋषि, सात गारव रूप तीन गारव से संयुक्त है वह (जइ) मुनि (अवंदिणज्जो होई) अवंदनीय होता है ॥१५॥ अर्थ-तीन गारव से गर्षित हो यति संघ के आचार कर्म को छोड़कर स्वयं निज कल्पित क्रिया कर्म का संग्रहण करने वाला मुनि अपन्दनीय होता है ॥१५॥ विशेष-गारव शब्द वर्ण के उच्चारण आदि का गर्व शब्द गारव, शिष्य पुस्तक, कमण्डलु पिच्छी आदि से अपने को ऊंचा प्रकट करना ऋद्धिमारव तथा भोजन-पान आदि से उत्पन्न सुख की लीला से मस्त होकर मोह मद करना सात गारव है। इस प्रकार इन तीन मारव (गर्व/अभिमान )के शिखर पर स्थितहोकर संघ के आचार कर्म को छोड़ देता है वह कौन-कौन से आचार कर्म को छोड़ देता है ? तब कहते हैं कि वह दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चरित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार इस प्रकार पंच प्रकार CONTARATHI STICORICA 34 T A

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