Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
श्री बल्याणमन्दिर स्तोत्र सार्थ तीधेश्वरस्य 'कमठ' स्मयधमकेतो-- स्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये ।।२।।
-(युग्मम) अनुपम करुणा की सु-मूर्ति शुभ, शिव मन्दिर अधनाशक मूल । भयाकुलित व्याकुल मानव के, अभयप्रदाता प्रति-अनुकूल ॥ विन कारन भवि जीवन ताग्न, भवसमुद्र में यान-समान । ऐसे पाद-पद्य प्रभु पारम. के प्रचूं मैं नित अम्लान ।। जिसकी अनुपम गुणगरिमा का, मम्बुराशि सा है विस्तार । यश-सौरभ सु-ज्ञान आदि का, सुरगुरु भी नहिं पाता पार ।। हठी कमठ शठ के मदमदन, को जो धूमकेतु-सा शूर । प्रति आश्चर्य कि स्तुति करता, उसी तीर्थपति की भरपूर ।।
श्लोकार्थ:-हे विश्वगुणभुषण | कलााणों के मन्दिर, अत्यन्त उदार, अपने और औरों के पापों के नाशक, संसार १-द्वाभ्यां युग्ममिति प्रोक्तं, त्रिभिः श्लोक विशेषकम् ।
कलापक चतुभिः स्या- तदूर्व कुलकं स्मृतम् ॥
अर्थ-- जहाँ दो श्लोकों में क्रिया का अन्दय हो उसे युग्म, तीन इलोकों में क्रिया का प्रत्यय हो उसे विशेषक, चार श्लोकों में किया का अन्वय हो उसे कलापक और इसीभांति जहाँ पांच छह सात आदि श्लोकों में क्रिया का अन्वय हो उसे कुलक कहते हैं।
नोट- इस स्तोत्र में मन्तिम श्लोक को छोड़ कर सर्वत्र "बसन्ततिलका' छन्द है ।
२- मोक्ष या कल्याण [कल्याणमक्षयम्वर्ग-इति विश्वलोपन कोषे पृ० १०७ श्लोक ४] -जहाण । ४-देवताओं का मन्त्री या इन्द्र के समान बुद्धिमान ।