Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
[ ६७
यंत्र मंत्र ऋद्धि प्रावि सहित
असाध्य रोग शामक
भो भो प्रमादमवधूय भजध्वमेन - मागत्य निवृतिपुरी प्रति सार्थवाहम् ।
एतन्निवेदयति देव !
जगस्त्रयाय
निःसुते ||२५||
"
नभ मंडल में गूंज गूंज कर, सुरदुन्दुभि' कर रही निनाद । रे रे प्राणी प्रातम हित नित, भज ले प्रभु को तज परमाद ।। मुक्ति धाम पहुंचाने में जो सार्थवाह वन तेरा साथ । देंगे त्रिभुवनपति परमेश्वर, विघ्नविनाशक पारसनाथ || भावार्थ है मुक्तिसार्थकवाहक ! प्रकाश में जो देवों के द्वारा नगाड़ा बज रहा है वह मानो चिल्ला-चिल्लाकर तीनों लोकों के जीवों को सचेत ही कर रहा है. कि जो मोक्षनगरी की यात्रा को जाना चाहते हैं वे प्रमाद छोड़कर भगवान पार्श्वनाथ की सेवा करें ।। २५ ।।
( यह दुन्दुभिप्रातिहार्य का वर्णन है )
सीख कहै तिहुँ लोक को, यह सुर-दुन्दुभिनाद । शिवपथ सारथिवाह जिन, भजह तबहु परमाद ।। २४ ऋद्धि - ॐ ह्रीं श्रीं णमो हिडलमलणाणं महा
तवाण' ।
1 – दुन्दुभि नाम का देवताओं का बाजा । २ शब्द | ३- सारथि सहायक वा असर ४- महातपधारी जिनों को
नमस्कार हो ।