Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यन्त्र मन्त्र ऋतिपादि सहित
yet I Have not reverentally enshrined Theo in my heart Hence I have become an object of miseries: for, aclicre, (sech as hearing, worshippin and seeing The perfermed without sidcerity ( Bhava) do not yield fruits. (28)
सर्वज्वरशामक त्वं नाथ ! दुखिजनवत्सल ! हे शरण्य !
कारुण्यपूण्य वसत ! वशिनां वरेण्य ! भक्त्या नते मयि महेश ! दयां विधाय,
दुखाकुरोहलनतत्परतां विघहि ॥३६।। दीन दुखी जीवों के रक्षक, हे करुणासागर प्रभुवर । पारणागत के हे प्रतिपालक, हे पुग्योत्पादक ! जिनवर ।। है जिनेश ! में भक्तिभाव वधा, शिर धरता तुमरे पग पर । दुःखमूल निर्मूल कसे प्रभु, करुणा करके अब मुझ पर ।।
इलोकार्थ- हे दयालुदेव ! श्राप दीनदयाल, शरणागतप्रतिपाल, दयानिधान, इन्द्रियविजेता, योगीन्द्र और महेश्वर हैं पस: सच्ची भक्ति से नम्रीभूत मुझ पर दया करके मेरे दुखाकुरों के नाश करने में तत्परता कीजिये ।। ३९ ॥ महाराज शरनागत पाल. पतित उपारन दीन दयाल । सुमरन करहुं नाय निज शीस, मुझ दुख दूर करहु जगदोस ।।
३९ ऋद्धि-ह्रीं महं णमो सम्बजरसंतिकरणाणं सप्पिसवीणं'।
१- धुलरूपी जिनों को नमस्कार हा ।