Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 170
________________ १७३ ] ये संस्तवं नव विभा ! रचयन्ति भत्या: ४६३० त्वद्विम्ब निमलमुरवाम्बुजब्दुलक्ष्याः. स्तम्भय जुमय श्रृंधन क श्री मन्दिरस्ताव सार्थ 1 後 ॐ नमो लिङ्क महासिद्ध जगतसिंह व 家 श्लोक ४३ 247 इत्थं समाहितधियो विधिवजिनेन्द्र ! नाकाबन् णमो बंदि माक्ख ( ? ) बा ऋद्धिहीं ( गा ? ) ए । मन्त्र ॐ नमी सिद्धि (द्ध ? ) महासिद्धि (द्ध ?) जगत् सिद्धि ( १ ) जयसिद्धि (द्ध ? ) ( सहिताय कारागारबन्धनं ) मम रोगं हिन्द बिन्द, स्तम्भय स्तम्भय, जुभव अभय, मनोवांदित ( तं ? ) सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा । गुण---बन्दी बचनमुक्त हो जाता है, रोग शान्त होते हैं तभा इष्टकार्यो की मिद्धि होती है । पल-पलकापुरी के चन्द्रप्रभ मंत्री ने इस काव्य वा मंत्र के प्रभाव के बने को बन किया था।

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