Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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ये संस्तवं नव विभा ! रचयन्ति भत्या: ४६३०
त्वद्विम्ब निमलमुरवाम्बुजब्दुलक्ष्याः.
स्तम्भय जुमय श्रृंधन क
श्री मन्दिरस्ताव सार्थ
1
後
ॐ
नमो लिङ्क महासिद्ध जगतसिंह
व 家
श्लोक ४३
247
इत्थं समाहितधियो विधिवजिनेन्द्र !
नाकाबन्
णमो बंदि माक्ख ( ? ) बा
ऋद्धिहीं ( गा ? ) ए ।
मन्त्र ॐ नमी सिद्धि (द्ध ? ) महासिद्धि (द्ध ?) जगत् सिद्धि ( १ ) जयसिद्धि (द्ध ? ) ( सहिताय कारागारबन्धनं ) मम रोगं हिन्द बिन्द, स्तम्भय स्तम्भय, जुभव अभय, मनोवांदित ( तं ? ) सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।
गुण---बन्दी बचनमुक्त हो जाता है, रोग शान्त होते हैं तभा इष्टकार्यो की मिद्धि होती है ।
पल-पलकापुरी के चन्द्रप्रभ मंत्री ने इस काव्य वा मंत्र के प्रभाव के बने को बन किया था।