Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यंत्र मंत्र ऋद्धि आदि सहित
बन्धनमोचक एवं वैभववर्द्धक इत्थं समाहितधियो विधिवजिनेन्द्र !
सान्द्रोल्लसत्पुलककञ्चुकिताङ्गभागाः । त्वद्विम्बनिर्मल मुखाम्बुजबद्धलक्ष्याः' , ये संस्तव तव विभो ! रचयन्ति भव्याः।।४३
। पार्या छन्द) जननयनकुमुदचन्द्र-प्रभास्त्र: स्वर्गसम्पदो भुक्त्वा । ते विगलितमलनिच या, अचिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते ।।४४।। है जिनेन्द्र । जो एकशि नव निरत इकटक कमल-बदन । भक्तिसहित सेवा से पुलकित, रोमाञ्चित है जिनका तन ।। अथवा रोमावलि के ही जो. पहिने हैं कमनीय वसन । यों विधिपूर्वक स्वामिन् तेरा, करते हैं जो अभिनन्दन ।।
जन-द्गरूपी 'कुमुद' वर्ग के, विकसायनहारे राकेश ! | भोग भोग स्वों के वैभव, मष्टकममल कर निःशेष ॥ स्वल्पकाल में मुक्तिधाम को, पाते हैं वे दशाविशेष । जहाँ सौख्य साम्राज्य अमर है, आकुलता का नहीं प्रवेश ।।
___ भावार्थ हे जितेन्द्रिय जिनेश्वर ! जो भव्यजन उपरोक्त प्रकार से प्रमादरहित होकर प्रापके देदीप्यमान मुखारविन्द
1 --'लन लक्ष्यं शरख्यकम्' इत्यभिषारितामगिकोष
का , लोक ४१, २-चन्द्र ।