Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री कल्याणमदिर स्तोत्र सार्थ
चौररिवाशु पशवः प्रपलायमानैः ।।
गोस्वामिनि स्फुरिसतेनसि दृष्टमाचे
वन हूँ या
हामी त्रिभु
मुख्यन्त एव मनुना. महसा निन्छ !
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श्लोक ऋद्धि--ॐ ह्रौं अहं णमो को पं हं सः। मन्त्र-ॐ ह्रीं श्रीं ह्मलीं त्रिभुवन ह्रस्वाहा।
गुण सर्प, गोह, विच्छ और छिपकली प्रादि विषले जन्तुनों का विष असर नहीं करता। विर्षले जन्तुषों के सताये जाने पर ऋद्धि-मत्र को बोलते हुए १०८ वार झाड़ना चाहिये ।
___ फल-काशीदेश के सिद्धसेन ब्राह्मण ने नवम काव्यसहित मत्र की आराधना से काले सर्प द्वारा सताये हुए विदग्धसेन को प्राणदान दिया था।