Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 148
________________ १५२ ] श्री कल्याणमन्दिरस्तोत्र सार्य भव्या प्रजन्ति बरसाप्यानरामान्यम् ॥१ यीत्वा यतः परमसमदसमभाता स्याने गभीर हदयाच - सम्भवायाः, Dayahang Rautahip. . श्लोक २१ ऋद्धि-डीआई णमो पुरिफ (य) ग (त) सब (१)ताए। मन्त्र-भगवती ( ? ) पुष्पपक्षावकारिणि (स्वं?) नमः ( स्वाहा )। गुण- सूबे हुए वन-उपवन के वृक्ष पुन: पल्लवित होने लगते हैं। फल- राजपुताना प्राम्स की नागीर मारी के ग्राहका मामक माली ने एक मुनि द्वारा प्रदत कल्याणमन्दिर के २१ वे लोकसहित, उक मत की साधना करके शुष्क उपवन के वृक्षों को पुनः पल्लवित कर लोगों को पाइनर्यचकित किया था और जैन धर्म को प्रभावना बढ़ाई की।

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