Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रो कल्याणमन्दिरस्तोत्र मार्थ की ग्रोर टकटकी लगाकर और सघन तथा उठे हुए रोमाञ्चरूपी वस्त्र पहिन कर विधिपूर्वक प्रापकी स्तुति करते हैं, वे भव्य देवलोक की सुखकर विविध सम्पत्तियों को भोग कर अष्टकर्मरूपी मल को प्रात्मा से दूर कर अविलम्ब अविनाशी मोक्ष मुख पाते हैं ।। ४३ ॥ ४४ ।
इहि विधि श्रीभगवन्त, सुजस जे भविजन भाहि । हे निज पुण्य भंगार मुनि सिरपार पनाम हिं ।। रोम रोम हुनसंत अंग, प्रभु गुन मन ध्यावहि । स्वर्ग सम्पदा भुज, वेग पंचम गति पावहि ।। यह 'कल्याण मन्दिर' कियो, कुमुदचन्द्र की बुद्धि ।
भाषा कहत बनारसी, कारन समकित मुद्धि ।। ४३ ऋद्धि-*ह्रीं अह णमो बंदिमोप्रगाणं मब्बसिद्धायदणाणं
मंत्र - ॐ नमो भगवति । हिडिम्बवासिनि ! मल्लल्लमांसप्पियेन हयल मंडलपइदिए तुह रणमत्ते पहरणटू पायासमंडि ! पायालमंडि सिद्धमरि जोइणिमंडि सन्यमुझमंडि कज्जलं पडउ स्वाहा।
( - श्री भै० ५० क० प्र० ९ श्लोक० २२ ) विधि-अँधियारी अष्टमी के दिन ईशान की ओर मूख करके इस मंत्र का जाप जपे। काले धतूरे के तेल का दीपक जला कर नारियल की खोपड़ी में काजल पाड़े 1 उम काजल से कपाल पर त्रिशूल का निशान बनाने तथा नेत्रों में लगाने से सब प्रकार के मय नष्ट होते हैं और चित्त की उद्विग्नता
१-- सम्पूर्ण सिदायतनों को नमस्कार हो ।