Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यंत्र मंत्र ऋद्धि प्रादि सहित
E५
मृगी उन्माद अपस्मार विनाशक अस्मिन्नपारभवमानिधी मनीमा !
मन्ये म मे श्रवणगोचरतां गतोऽसि । ग्राकगिते तु तव गोत्र-पवित्र-मन्त्र,
कि वा विपद्विषधरी सविध समेत ?।।३५ इस असीम भव सागर में नित, भ्रमत अकथ दुख पायो। तोऊ सु-यश तुम्हारो साचों नहिं कानों सुन गयो । प्रभु का नाम-मन्त्र यदि सुनता. चित्त लगा करके भरपूर । तो यह विपदारूपी नागिन, पास न माती रहती दूर ।।
श्लोकार्थे - हे सङ्कटमोचन ! इस अपार संसार सागर में मैंने आपका नाम नहीं सुना अर्थात् पाएकी उत्तम कीति मेरे कानों द्वारा नहीं सुनी गई; क्योंकि निश्चय मे यदि आपका नामरूपी पवित्र मन्त्र मैंने सुना होता तो क्या विपत्तिरूपी नागिन मेरे समीप पाती ! अर्थात कभी न पाती ॥३५ । भवसागर मुंह फिरत अजान, मैं तुब सुजस सुन्यौ नहि कात् । जो प्रभुनाम मत्र मन घरं, तासौं त्रिपति भुजंगम डरै ॥ २५ ऋद्धि -ॐ ह्रीं अर्ह णमो मिगोरोप्रचारयाणं मणबलोणं ।
__ मत्र--ॐ नमो अरिहताण जम्ल्यूं नम:,ॐ नमा सिद्धाणं भम्ल्यू नमः, ॐ नमो पायरियाणं स्म्ल्ब्यू" नमः, ॐ नमो उवज्झायाण मरव्यू नमः, ॐ नमो लोए सन्वसाहूण छायूं नमः, देवदत्तस्य (अमुकस्य) संकटमोक्षं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि--सुन्दर चौकी पर इस मंत्र को लिख कर श्री -मनोबल घारी जिनों को नमस्कार हो ।