Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री कल्याणमांदर स्तोत्र सार्थ
अगणिन प्रेत पिशाच असुर ने, तुम पर स्वामिन भेज दिये। भव भव के दुखहेतु क्रूर ने, कर्म अनेकों बांध लिये ॥ ___इलोकार्थ हे उपसर्गविजयिन् | कमठ के जीव में मापको कठोर तपस्या से चलायमान करने की खोटी नियत से जो विकराल पिशाचों का समूह माप की तरफ उपद्रव करने के लिये दौड़ाया था, उससे आपका कुछ भी बिगाड़ नहीं हुमा परन्तु उस कर कमठ के ही अनेक खोटे कर्मों का बन्ध हुग्रा, जिससे उसे भव भव में असह्म यातनाएँ झेलनी पड़ी ।।३३।। वस्तुछन्द -मेघमाली आग बल फोरि ।
भेजे तुरत पिशाचगान, नाथ पास उपमर्ग करन । अग्निजाल मलकत मुख धुनि,करंत जिमि मत्तवारण।। कालरूप विकराल भन, मुण्डमाल तिह कठ।
व निसंक वह रंक निज, करे कर्मदृढ़ गठ ।। ३३ ऋद्धि ॐ ह्रीं पह णमो प्रसणिपातादिवारयाणं सम्बोसहिपताणं ।
मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ग्रां श्री ग्रः क्लीं क्लीं कलिकुण्ड पासनाह ॐ चुरु चुरु मुरु मुरु फुरु फुह फर फर { फार फार । किलि किलि कल कल धम धम ध्यानाग्निना भस्मीकुरु कुरु पुरय पुरय प्रणतानां हितं कुरु कुरु हुं फट् स्वाहा ।
विधि इस मंत्र का श्रद्धापूर्वक स्मरण करने से राज्य भय, भूतभय, पिशाचभय, डाकिनी शाकिनी हस्ती सिह सर्प विच्छ आदि का भय नष्ट होता है। ॐ ह्रीं कमठदत्यप्रेषिसभूतपिशाचाद्यक्षोम्याय श्रीजिनाय नमः ।
t...मदोन्मत हापी। २- सयौं पविघ्रिाप्त विनों को नमस्कार हो।