Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यंत्र मंत्र ऋद्धि प्रादि सहित
| ७९ दलोकार्थ हे जितशत्रो ! प्रापके पूर्वभव के वरी 'कमळ' ने माप पर भारी धूल उड़ा कर उपसर्ग किया परन्तु वह धूलि आपके शरीर की छाया भो नष्ट नहीं कर सकी, प्रत्युत तिरस्कार की दृष्टि से किया गया उसका यह कार्य तो दूर रहे किन्तु विफल मनोरण हताश वह दुष्ट कमठ का जीव ही रज-कणों ( पापकर्मों से कस कर जकड़ा गया || ३१ 11 कोयौ सु फमत निज़ वैर देख तिन करी घल वर्षा बिमख । प्रभु तुम छाया नहिं भई हीन, सो भयो पापि लम्पट मलीन ।
३१ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अई णमो इविण्णत्तिटावयाणं बेलोसहिपत्ताणं ।
मंत्र-ॐ ह्रीं पाश्वयक्षदिव्यरूपाय महा (घ? } वर्ण एहि एहि ाँ कों ह्रीं नम: ।
-( भ. प. क. प्र. ३ श्लो० १९ ) विधि-इस मंत्र को श्रद्धापूर्वक जपने से दुष्ट दुश्मनों का पराजय होता है तथा उपद्रव शान्त होते हैं।
ॐ ह्रीं रजोवृष्टयक्षोभ्याय श्रीजिनाय नमः । Thone who try to harass Got are caught in their own trap.
M asses of dust which entirely filled up the sky and which were thrown up in rage by malevolent Kamatha failed to mar, oh Lord, even Thy loveliness. On the contrary, that very wretch whose hopes were shattered, was caught in this trap (of masses of dust). (31)
१-खे नीधि ऋद्धि प्राप्त जिनों को नमस्कार हो।