Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यंत्र मंत्र ऋद्धि ग्रादि सहित
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innumerable resplendent virtures. (For) does not even a child describe according to its own intellect the vastness of the ocean by stretching its arms ? ( 5 )
सन्तानसम्पति प्रसाधक
ये योगिनामपि न यान्ति गुणास्तवेश !
वक्तुं कथं भवति तेषु ममावकाशः । जाता तदेव मसमीक्षित-कारितेयं,
जल्पन्ति वा निजगिरा नन् पक्षिणोऽपि ॥ ६ ॥
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हे प्रभु! तेरे अनुपम सब गुण, मुनिजन कहने में असमर्थ । मुसा मूरख श्री प्रबोध क्या कहने को हो सके समर्थ ॥। पुनरपि भक्तिभाव से प्रेरित, प्रभु स्तुती को बिना विचार । करता हूँ, पंछी ज्यों बोलत, निश्चित बोली के अनुसार ॥
श्लोकार्थ - हे गुणगणालंकृतदेव ! आपके जिन अपरिमित गुणों का वर्णन करने में बड़े-बड़े योगी और घुरन्वर विद्वान तक अपने आपको ग्रममयं मानते हैं। उन गुणों का वर्णन मुझ जैसा अल्पज्ञ मानव कैसे कर सकता है? अतः स्तवन प्रारम्भ करने के पूर्व अपनी शक्ति को न तौल कर मैंने आपको जो स्तुति प्रारम्भ की है, वास्तव में मेरा यह प्रयत्न बिना विचारे ही हुआ, फिर भी मानवजाति की वाणी बोलने में प्रसमर्थ पशु पक्षी अपनी ही बोली में बोला करते हैं, वैसे ही मैं भी अपनी बोली में आपकी प्रभावशालिनी, पुण्यदायिनी स्तुति करने के लिये प्रवृत्त होता हूँ ॥ ६ ॥