Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यंत्र मंत्र ऋद्धि प्रादि सहित
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गया श्रापका चिन्तवन ही कारण है। इसलिए हे भगवन् ! श्राप भवपयोधितारक कहलाते हैं ।
तूं भविजन तारक किम होह, ते चित्त घारि तिरहि ले तोह । यह ऐसे कर जान स्वभाउ तिरे मसक ज्यों गभितवाउ' ।।
१० ऋद्धि - ॐ ह्रीं अहं णमो लक्खरभयपणासयाणं उजुमदीण* ।
मंत्र-ॐ ह्रीं चक्रेश्वरी चक्रधारिणी जलजलनिहिपारउतारणि जलं थंभय दुष्टान् देश्यान् दारय दारय असि वोपसमं कुरु कुरु ॐ ठः ठः ठः? ) स्वाहा |
विधि-गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र का योग पड़ने पर घरा संघ को शुद्ध हृदय से ६० सिद्ध करे । पात् कार्य पड़ने पर २१ वार मंत्र का आराधन करने से हर तरह के पानी का भय नष्ट होता है ।
ॐ ह्रीं भवोदधितारकाय श्रीजिताय नमः |
He suggests the advantage of consiant contemplation about God.
Oh Jina! How art Thou the saviour of
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mundane beings when (on the contrary) they themselves carry Thee in their hearts while crosing ( the ocean of existence ) ? Or indeed, that a leather bag (for holding water) floats in
१-हवा । २ – ऋजुमति मन:पर्ययज्ञानभारी जिनों को नमस्कार हो ।