Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
यन्त्र मन्त्र ऋद्धि प्रादि सहित
उच्चाटनकारक चित्र विभो । कथमबाड मुखवन्तमेव,
विष्वक् पतविरला सुपुष्पवृष्टिः । त्वद्गोचरे सुमनसां यदि वा मुनीश !,
गच्छन्ति ननमध एव हि बन्धनानि ।।२०।। है विचित्रता सुर बरसाते, मभी प्रोर से सघन-सुमन । नीचे डठल ऊपर पखुरी, क्यों होते हैं हे भगवन ।। है निश्चित, सुजनो मुमनों के, नीचे को होते बन्धन । तेरी समीपता की महिमा है, हे वामा–देवी नन्दन ।।
लोकाथं हे धमसाम्राज्यनायक ! देवों के द्वारा प्रापके ऊपर जो सधन पुष्पों की वृष्टि की जाती है, उनके डंठल नीचे को पोर और पाखुरी ऊपर की ओर रहती हैं, मानों वे डंठल इसी बात को सूचित करते हैं कि प्राप की निकटता से भव्यजनों के कर्मबन्धन नीचे को हो जाते हैं अर्थात् नष्ट हो जाते हैं ॥ २० ॥
( पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य का वर्णन है) सुमनवृष्टि जो सुर कहि, हेट वीट मुख सोहि ।
स्यों तुम सेवत सुमनजन, बन्ध अधोमुख होहिं ॥ २०ऋति-ह्रीं महं णमो गहिलगहणालयाणं आसीविसाणं ।
मन्त्र-ॐ ह्रीं नमो भगवरो, ॐ (?) पासनाहस्स थमय सब्वामो ई ई, ॐ जिशाणाए मा इह, अहि हवंतु, ॐक्षा क्षी-हीं झू नौं सः स्वाहा। २ अवज्ञानरहित बने अथवा धागप्रवाहरूप से । २- नीचे ३ पापी विष ऋद्विधा (जिनों को नमस्कार हो ।