Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
६४ ]
श्री कल्याण मंदिर स्तोत्र साथ उसवल हेम सुरल-'पीठ पर. श्याम सु-तन शोभित 'अनुरूप । प्रतिगम्भीर सु-'निःसृत वाणी, बसलाती है सत्य स्वरूप ॥ ज्यों सुमेरु पर ऊँचे स्वर से, गरज गरज धन बरसे घोर । उसे देखने सुनने को जन, उत्सुक होते जसे मोर ||
श्लोका--ह भगवन् : स्वपीनाना और रलक्षित सिंहासन पर विराजमान और दिपध्वनि को प्रकट करता हुमा प्रापका सांवला शरीर ऐमा जान पड़ता है जैसे स्वर्णमय सुमेरुपर्वत पर वर्षाकालीन नवीन कारने मेघ गर्जना कर रहे हों। उन मेघों को जैसे मयूर बड़ी उत्सुकता से देखते हैं उसी प्रकार भव्य जीव प्रापको भी बड़ी उत्सुकता से देखते हैं ॥२३॥
( यह सिंहासन प्रातिहार्य का वर्णन है) सिंहासन गिरि मेरु सम, प्रभु धुनि गरजत घोर । श्याम सुतन घनरूप लखि, नाचत भविजन-मोर ।।
२३ ऋद्धि ॐ ह्रीं ग्रह णमो बज्भय । बंधण ) हरणाणं 'दित्त तयाणं ।
मंत्र-ॐ नमो भगवति ! चण्डि ! कास्यायनि! सुभग' दुर्भगयुवतिजनानां (मा कर्षय पाकर्षय ह्रीं र र टयू संबोषट् 'देवदत्ताया हुवयं घ धे।
___विधि--इस मंत्र को दिन तक प्रतिदिन १०८ वार जपने से इच्छित स्त्री का आकर्षण होता है। ___ॐ ह्रीं सिंहासन प्रातिहार्योपशोभिताय श्री जिनाय नमः ।
-सिंहासन । २-प्रपूर्व ३.--प्रभी तरह निकलने वाली । ४.-मे। ५-दीप्ततप बाले जिनो को नमस्कार हो । ६-उस का नाम लेना चाहिये जिसका पाकर्षक करना है।