Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यंत्र मंत्र ऋद्धि प्रादि सहित मध्यस्थ महानुभाव विग्रह (शरीर और कलह ) को शान्त कर देते हैं। प्रतः आप भी ध्यान के समय याता के शरीर क मध्य में स्थित होकर विग्रह अर्थात् शरीर को नष्ट कर देते हो प्रति अापके ध्यान से शरीर छूर जाता है और प्रारमा मुक्त हो जाता है ।। १ ॥ जाके मन तुम कह निवास, विनस जाय क्यों विग्रह तास ॥ ज्यों महन्त विच प्रावं कोय, विग्रह मूल निवारं सोय
१. ऋद्धि-ॐ ह्रीं मह ामो गहणवणभयणासयाणं तविज्जाहराण। ___ मंत्र--ह्रीं नमो रिहताण पादौ रक्ष रक्षत. ॐ ह्रीं नमो सिद्धरणं कर्टि रक्ष रक्ष, ॐ ह्रीं नमो पायरियाणं नामि रक्ष रक्ष, ॐन्हीं ममो उवझायाणं हृदयं रक्ष रक्ष,मोह्रीं नमो लोए सम्बसाइण ब्रह्माण्ड रक्ष रक्ष, हो एसो पंच णमुक्कारो शिखा रक्ष रक्ष, ह्रीं सध्वपावपणासणो भासनं रक्ष रक्ष, ॐ ह्रीं मंगलाण च सम्वेसि परमं होइ मंगलं मात्मरक्षा पररक्षा हिलि-हिलि मातगिनि स्वाहा ।
विधि---श्रापूर्वक इस महामंत्र का प्रतिदिन पाप करने से कार्माणादि कर्मों का दोष दूर होता है ।
ॐ ह्रीं विवाह निधारकाय भीजिनाय नमः ।
Uh jina ! How is it that Thou destroyest that very body of the, Bhavyas in the interior of which they enshrina Thee ? Or why, ibia in the nature of an arbitrator (one who remains impartial):
१-विमाधारी विनों को नमस्कार हो। २-मोवारो इत्यपि पाता।