Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यंत्र मंत्र ऋद्धि मादि सहित
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है अचिन्त्य महिमा स्तुती की, वह तो रहे अापको दूर । जब कि बचाता भव-दु:खों से, मात्र आफ्का 'नाम' जरूर ।। प्रीष्म कु-ऋतु के तोत्र ताप से, पीडित पन्यो' हुये अधोर । पद्म-सरोवर दूर रहे पर नोषित करना सभीर ____इलोकार्य हे सातिशयनामन् ! जैसे गीष्मकाल में असह्य प्रचण्ड धूप से व्याकुल राहगीरों को केवल कमलों से युक्त सरोवर ही सुखदायक नहीं होते; पपितु उन जलाशयों को जल-फण-मिश्रित ठंडी २ झकोरे भी सुखकर प्रतीत होती हैं। वैसे ही हे प्रभो! प्रापका स्तवन ही प्रभावशाली नहीं है, वरन आपके पवित्र 'नाम' का स्मरण भी जगत के जीवों को संसार के दारुण दुःखों से बचा लेता है । वास्तव में प्रभु के गुणगान और उनके नाम की महिमा प्रचिन्त्य है ||७|| सुम जम महिमा अगम अपार, नाम एक त्रिभुवन आधार । पावे पवन पग्रसर' होय, ग्रीषम तपन निवारं सोय ॥ ७ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो अभिट्ठसाधयाणं बीजबुद्धीणं ।
मंत्र-ॐ नमो भगवमो प्रारमिस धंधेण बंधामि रक्ससाण,भूयाण खेयराणं,चोराण,दाढाण साईणीण, महोरगाणं अण्णे जेवि दुठ्ठा संभवन्ति तेसि सव्वेसि रण मुह गई दिछी बधामि धणु धण महाषणु ज: जः (जः ? ) ठः ठः ठः हुं फट् ( स्वाहा?)
-- भैरवपद्मावतीकल्पे प्र०७ श्लोक १७ ) विधि-हन बन के कठिन मार्ग पर चलते हुए भय उत्पन्न होने पर इस मंत्र द्वारा कुछ कंकरों को मंत्रित कर
-राहगीर । २ हवा । 1- कमलयुक्त सरोवर । ४-बीअबुद्धिषारी जिनों को नमस्कार हो ।