Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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यंत्र मंत्र ऋद्धि आदि सहित
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अगम अथाह सुखद शुभ सुन्दर, सत्स्वरूप तेरा अखिलेश ! | क्यों ऋरि कह सकता है मुझसा, मन्दबुद्धि मूरख करुणेश ! ॥ सूर्योदय होने पर जिसको, दिखता निज का १गात नहीं । ● दिवाकीति क्या कथन करेगा, ३मार्तण्ड का नाथ ! कहीं 1
श्लोकार्थ - हे सप्तभयविनाशक देव ! आपके गुणों का सामान्यरूप से भी वर्णन करने के लिये हम सरीखे मन्दबुद्धि वाले पुरुष कैसे समर्थ हो सकते हैं ? अर्थात नहीं हो सकते। जैसे जिसे दिन में स्वयं नहीं सूझता ऐसा उलूक (उल्लू) पक्षी का बच्चा धीट होकर भी क्या सूर्य के जगमगाते विम्ब का वर्णन कर सकता है 2 अर्थात् कदापि नहीं कर सकता ||३|| मनुष्यप्रति प्राह क्या हम
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ज्यों विन छ उस्को पोस कहि न सके रविकिरन उक्षेत " ३- ऋद्धि- ॐ ह्रीं ग्रहणमो समुभयसामण बुद्धी मोहजिणं मंत्र-ॐ ह्रीं हरकतों बगलामुखी देवी नित्ये ! किन्न े ! मद्रवे! मदनातुरे ! वषट् स्वाहा ।
विधि पुष्यनक्षत्र के योग में इस महामन्त्रका २१ दिन तक १२००० जाप पूरा करने से तीनों लोक वशीभूत होते हैं।
ॐ ह्रीं
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क्याधीशाय नमः ।
He points out his incompetency to under take
such a work.
On Lord 'how can persons like us succeed in giving even a general outline
१- शरीर २ – उल्लू नाम का पक्षी (दिवाकीति उलूके स्थातवि० लो० कोष पृ० १५५ श्लोक २१५) । ३ - सूर्य मानवानी जिलों को नमस्कार हो ।
४ –
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