Book Title: Jivajivabhigamopanga Sutra
Author(s): Chaturdash Purvadhar, Malaygiri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः
अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, अपजत्तगाणं सब्वेसिं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पजत्तगाणं सब्वेसिं उक्कोसिया ठिती अंतोमुहुत्तऊणा कायव्वा ।। (सू० २२७) पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइयत्तिकालतो केवचिरं होइ?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं असंखेनं कालं जाव असंखेज्जालोया।एवं जाव आउ० तेउवाउक्काइयाणं वणस्सइकाइयाणे अंणतं कालं जाव आवलियाए असंखेजतिभागो।तसकाइए णं भंते जहन्नेणं अंतोमु० उक्कोस्सेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमभहियाई । अपज्जत्तगाणं छण्हवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं, पजत्तगाणं-वाससहस्सा संखा पुढविद्गाणिलतरूण पजत्ता । तेऊ राइदिसंखा तससागरसंतपुहत्ताई॥१॥ पजत्तगाणवि सव्वेसिं एवं ॥ पुढविकाइयस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उकोसेणं वणप्फतिकालो । एवं आउतेउवाउकाइयाणं वणस्सइकालो, तसकाइयाणवि, वणस्सइकाइयस्स पुढविकाइयकालो । एवं अपजत्तगाणवि वणस्सइकालो, वणस्सईणं पुढविकालो, पज्जत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो, पजत्तवणस्सईणं पुढविकालो ॥ (सू० २२८) 'तत्थ ण'मित्यादि, तत्र ये ते एवमुक्तवन्तः पडिधाः संसारसमापन्नका जीवास्ते 'एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेणोक्तवन्तः, तमेव प्रकारमाह, तद्यथा-पृथ्वीकायिका इत्यादि प्राग व्याख्यातं ।। 'से किं तं पुढविक्काइया' इत्यादीनि पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिविषयाणि त्रीणि
॥४११॥
५ प्रतिपत्ती पृथ्व्यादीना भेदाः स्थितिःकायस्थितिः उद्देशः२ |सू०२२६
२२८
AAGGAGACASAMASSAGARCA
॥४११॥
Jain Education Inteu
For Private & Personel Use Only
S
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938