Book Title: Jin Stotra Kosh
Author(s): Chandrodayvijay, Suryodayvijay
Publisher: Kot Tapgacch Murtipujak Shwetambar Jain Sangh

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीजिनस्तोत्रकोशः ૨૩ मुक्तवात्मवैरव्यसनानुबन्धितां यां नित्यवैरा अपि संश्रयन्त्यहो । परैरगम्यां सुलभां सुपुष्यिभिस्त्वद्देशनाभूमिमुपास्महे हि ताम् ॥ ४ ॥ धर्माधर्मपथज्ञः स्तुत इति धर्मप्रदोऽस्तु धर्मजिनः । महहर्षविनय सूरितरूपश्रीर्धर्महंस महाः ॥ ५॥ ॥ इति श्री धर्मनाथस्तोत्रम् ॥ २१ ॥ अथ वसन्ततिलका Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ श्रीशान्तिदेवस्तोत्रम् ॥ २२ ॥ ---- विश्वातिशायि महिमा महिमाननीया श्रीविश्वसेननृपवंशसमृद्धिसिद्धिम् । सद्बुद्धिवृद्धिनिधिधर्मपथप्रकाशं शान्ति श्रये श्रितसुशान्तिपदं मुदेशम् ॥ १॥ अर्हत्पदप्रथितचत्रिविभुत्वसत्त्व, सङ्केतसद्मसरसागमसन्नयश्रीः । स्याद्वाद विद्वदनपद्मभवाविरोधि सद्देशना गतनयः शिवदोऽस्तु सार्वः ॥ २ ॥ सद्देशनाश्रितभवद्वचसां प्रभावः कोऽप्यद्भुतोऽस्ति युगपत्सहसा समेषाम् । सर्वेऽपि संशयपथाः सदसि स्थितानां नश्यन्ति यद्भुवि भियेव सहार्त्तिपूर्त्या ॥ ३ ॥ विश्वातिशायिविभुता तव यज्जिनेश त्वद्देशना स्थितिरियं मनसा स्मृताऽपि । भव्यात्मनां सुखकरी भवभीहरी तत् किं किं करोति न मुदा नयनेक्षिताऽसौ ॥ ४ ॥ श्रितशान्तिस्तव शान्तिस्तनोतु शान्ति स्तुत इति जिनशान्तिः । जिनद्दर्षविनय सूरिततस्वार्थो धर्महंसपदम् ॥ ५ ॥ ॥ इति श्री शान्तिदेवस्तोत्रम् ॥ २२ ॥ For Private and Personal Use Only ww

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