Book Title: Jin Stotra Kosh
Author(s): Chandrodayvijay, Suryodayvijay
Publisher: Kot Tapgacch Murtipujak Shwetambar Jain Sangh

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीजिनस्तोत्रकोशः अथ श्रीमल्लिदेवस्तोत्रम् ॥ २५ ॥ जगतीजनमानसेप्सितप्रदकुम्भक्षितिपान्वयोद्भवम् । निजसित्रनृपप्रबोधिनं प्रणुमो मल्लिजिनं प्रमोदतः ॥ १॥ परशासनभासनैर्नयैर्वितथार्थ कुपथं प्रसृत्वरम् । अपनीय सदर्थदेशिनीं जिन ते शासनसम्पदं श्रये ॥२॥ कुसुरैः कुगुरूक्तिसेवनैः श्रितमिथ्यात्वविकारहारिणीम् । जगदद्भुतधर्मशेवधिं जिन ते शासनसम्पदं श्रये ॥३॥ भवभाविभवातुरच्छिदं विकटादृष्टनिकृष्टिपाटिनीम् । त्रिजगजनताप्रियङ्करी जिन ते शासनसम्पदं श्रये ॥४॥ श्रीमलिदेवनुत इति भविकानां भविकसम्पदं चिनु मे । जयहर्षविनयसूरितभवततियोद्धर्महंसततम् ॥ ५ ॥ इति श्रीमल्लिदेवस्तोत्रम् ॥ २५ ॥ अथ श्रीमुनिसुव्रतदेवस्तोत्रम् ॥२६॥ भुवनजन्तुसुमित्र सुमित्र सत्क्षितिपवंशविशेषविभूषणम् । बहुलकान्तिकलालय संवरं नमत भो भविका मुनिसुव्रतम् ॥ १॥ गतरुषाऽपि हि कर्मचमूस्त्वया हतवती सहसैव सुदुःसहा। द्रुमचयः सकलेऽपि न दह्यते सहजशीतलशीलहिमेन किम् ॥२॥ वचन तुष्यसि नैव न रुष्यसि त्वमसि सौख्यपदप्रद ईश यत् । इह नुतोऽपि धृतो मनसीक्षितः सुविभुता तव कापि नदद्रुता ॥३॥ त्वदुचितं तव पूजनतत्परस्त्वमिव भाति जगत्रयसेवनैः।। त्वदुपरीश सुभक्तिसंजुषस्त्वमिह यत्समपूज्यपदप्रदः ॥४॥ . द्रुतविलम्बितम् ॥ श्रीमुनिसुव्रतनाथो योगक्षेमाकरः करोतु वरम् । श्रुतहर्षविनयसूरिभिराशास्यो धर्महंस वसुम् ॥ ५॥ इति श्रीमुनिसुव्रतदेवस्तोत्रम् ॥ २६ ॥ For Private and Personal Use Only

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