Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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यह महाकाव्य भी महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी ने दीक्षा के पूर्व लिखा था । उस समय आपका नाम ब्रह्मचारी पंडित भूरामल शास्त्री था ।
3. सुदर्शनोदय महाकाव्यम् _ यह महाकाव्य जैन दर्शनानुसार चौबीस कामदेवों में से अन्तिम कामदेव सेठ सुदर्शन के जीवन चरित्र को प्रस्तुत करता है । इस महाकाव्य में एक गृहस्थ के सदाचार, शील एवं एक पत्नीव्रत की अलौकिक महिमा को प्रदर्शित किया गया है, को व्यभिचारिणी स्त्रियाँ एवं वेश्याएँ अनेक प्रकार की कामुकता से परिपूर्ण अपनी चेष्टाओं से भी स्वदार संतोषव्रती सुदर्शन को शील व्रत से च्युत नहीं कर पाती है। _ काव्य नायक जयकुमार के शील व्रत की महिमा के कारण शूली भी सिंहासन में बदल जाती है । यह महाकाव्य रूढ़िक परम्पराओं से हटकर दार्शनिक साहित्य विधा से ओत-प्रोत होकर भक्ति संगीत की अलौकिक छटा प्रस्तुत करता है । एक आर्य श्रावक की दैनिक चर्या को सुचारु ढंग से प्रस्तुत किया गया है । राग की आग में बैठे हुए काव्यानायक को वीतरागता के आनन्द का अनुभव कराया है । काव्यनायक के जीवन के अंतिम चरण को श्रमण संस्कृति के सिद्धान्तों से विभुषित किया है । यूँ कहना चाहिये कि यह काव्य जहाँ साहित्य की छटा को बिखेर कर साहित्यकारों के लिए और दार्शनिकता के कारण दार्शनिकों के लिए अपनी बुद्धि को परिश्रम करने की प्रेरणा देता है, वहीं पर गृहस्थ एवं साधु की आचार संहिता पर भी प्रकाश डालता है । इस काव्य को 481 श्लोकों को लेकर 9 सर्गों में विभाजित किया गया है । स्वोपज्ञ हिन्दी टीका सहित प्रकाशित है । ___ यह महाकाव्य भी महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी ने दीक्षा के पूर्व लिखा था, जिस समय आपका नाम ब्रह्मचारी पंडित भूरामल शास्त्री था ।
4. भद्रोदय महाकाव्यम् (समुद्रदत्त चरित्र) इस काव्य में अस्तेय को मुख्य लक्ष्य करके एक भद्रमित्र नामक व्यक्ति के आदर्श चरित्र को काव्य की भाषा शैली में प्रस्तुत किया गया है । वहीं पर | सत्यघोष जैसे मिथ्या ढोंगी के काले कारनामों की कलई खोली गई है । यह काव्य 'सत्यमेव जयते' की उद्घोषणा करता है । इस लघु-महाकाव्य के लक्षणों के साथसाथ पुराण काव्य एवं चरित्र काव्य के लक्षणों का समन्वय हो जाने के कारण त्रिवेणी संगम के समान पवित्रता को प्राप्त होता है । यह काव्य 344 श्लोकों को
लेकर 9 सर्गों में विभाजित है।