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जन्मसमुद्रः
कर्कस्थेऽङ्गगे लग्नगे प्रकिरणा शनिना प्रारेण मौमेन वा दृष्टे सति कुब्जको भग्नपृष्ठो वाच्यः ।। २२ ।।
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किसी भी स्थान में रहे हुए शनि और मंगल ये बुध की राशि के हों, अर्थात् कन्या या मिथुन राशि के हों अथवा इनके नवमांश के हो तो दांत वाले बालक का जन्म कहना | ये योग छ प्रकार के हैं— मंगल और शनि मिथुन राशि में हों और मिथुन के ही नवमांश में हो । मिथुन राशि में हों और कन्या के नवमांश में हों। कन्या राशि में और कन्या के नवमांश में हों । कन्या राशि में और मिथुन के नवमांश में हों। मंगल मिथुन राशि में और बुध के नवमांश में हो । शनि मिथुन राशि में बुध के नवमांश में हों। ये छ योगों में से कोई योग हो तो दांतवाला बालक का जन्म कहना । यदि चन्द्रमा कर्क राशि का होकर लग्न में बैठा हो और उसको शनि या मंगल देखता हो तो बालक कुबडा होता है ||२२||
अथ पंगुवधिरयोगानाह -
मीनाङ्ग शनिशश्यारे र्हष्टे पंगुस्तु गर्भगः ।
कर्का लिमीनान्त्यां शस्थे पापे चेन्दौ स विश्रुतिः ॥२३॥
मीनाङ्गो मीन लग्ने शनिशश्यारैर्हष्टे पंगुः पादरहितः स्यात् गर्भग उदरस्थः । अथवा पापग्रहे इन्दौ च कर्कवृश्चिकमीनानां योऽन्त्यो नवांशस्तत्रस्थे च सति स बालो विश्रुतिः बधिर इत्यर्थः ॥ २३॥ Sufis मीन लग्न को शनि, चन्द्रमा और मंगल देखते हों तो गर्भ में रहा हुआ बालक पंगु (पांगला) होता है । तथा पाप ग्रह और चन्द्रमा, कर्क, वृश्चिक और मीन के अन्तिम नवांश में हो तो बालक बधिर (बहरा) होता है ||२३|
अथे नेत्र विकलयोगानाह -
सिहाङ्ग र्के कुजार्कोक्ष्ये चान्त्यस्थे निरवामहम् ।
एवं चेन्दौ विवामाक्षो द्वयोमिश्रेक्ष्ययोः कुट्टक् ॥ २४ ॥
अर्के सिहाङ्ग सिंहलग्नस्थे कुजार्कीक्ष्ये भौमशनिदृष्टे सति वा अथवा सिंहलग्ने सति अन्त्यस्थे व्ययस्थेऽर्के सति श्रथवा सिंहलग्नं विना लग्नगे व्ययगेऽर्के वा कुजशनिदृष्टे, निरवामहक - निर्गता श्रवामा दृग् दृष्टिर्यस्य स दक्षिणाक्षणा काण इत्यर्थः । एवममुना प्रकारेण च शब्दादिन्दौ क्षीणेन्दौ सिहाङ्ग सिंहलग्ने सति कुजशनिदृष्टे, अथवान्त्यस्थे क्षीणेन्दो सिंहाङ्ग सिंहलग्ने सति, वाथवा सिंहलग्नं विना लग्नस्थे व्ययस्थे वा चन्द्र कुजशनि दृष्टे विवामाक्षः विगतं वामं अक्षयस्य स वामाक्ष्णा कारणः । अथ सिंहाङ्ग सिंहलग्नस्थे अन्त्यस्थे व्ययस्थे वर्के चन्द्र च कुजशनिदृष्टे जात्यन्धो भवेत् । द्वयोर्यत्र तत्र मिश्रेक्षयोमिश्राः पाप
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