Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 58
________________ ४६ जन्मसमुद्रः अर्के सुखे चतुर्थस्थे, कुजे खे दशमस्थे, मन्दयुक्तेक्ष्ये च शनिना युक्ते दृष्टे वा सति काष्ठसम्भवः काष्ठताडितस्य जातस्य मृत्युर्जायते । शनीन्द्वारैः शनिक्षीणेन्दुकुजैः क्रमेण स्वाम्बुखस्थैः क्षतकीटतः क्षतस्य व्रणस्य ये कीटाः कृमयः तेभ्यो मृत्युः शरीरपातः स्यात् ।।७।। सूर्य चौथे स्थान में और मङ्गल दसवें स्थान में हो उसके साथ शनि हो या शनि की दृष्टि हो तो लकड़ी से मृत्यु कहना । एवं शनि दूसरे स्थान में, चन्द्रमा चोथे स्थान में और मंगल दसवें स्थान में हो तो घाव के कीडे से मृत्यु कहना ॥७॥ अथ लकुटाहतस्य मृत्युज्ञानमाह यष्टेः केन्द्वारसौरा-रष्टाज्ञाङ्गाम्बुगैर्यथा । कर्मधर्माङ्गधोगैश्च धूमबन्धाग्निकुट्टनात् ॥८॥ केन्द्वारसौराकैः क्षीणेन्दुकुजशनिसूर्यैः यथामार्गेणाष्टाज्ञाङ्गाम्बुगैर्यथासंख्यमेतैरष्टमदशमलग्नचतुर्थस्थैर्यष्टेर्दण्डाहतस्य लकुटताडितस्य जन्तोमृत्युः । अथ च शब्दादेतैः क्रमेण कर्मधर्माङ्गधीस्थैर्दशमनवमलग्नपंचमस्थैरेतैः क्षीणेन्दुकुजशनिसूर्यैः धूमबन्धाग्निकुट्टनाद् धूमेन शरीरबन्धेन वा वह्नितो वा कुट्टनात् खट्वाङ्गादिप्रहरणाद्वा मृत्युभविष्यतीति वाच्यम् ।।८।। क्षीण चन्द्रमा पाठवें स्थान में, मंगल दसवें स्थान में, शनि लग्न में और सूर्य चोथे स्थान में हो तो लकड़ी से मृत्यु कहना। क्षीण चन्द्रमा दसवें स्थान में, मंगल नवें स्थान में शनि लग्न में और सूर्य पांचवें स्थान में हो तो धुग्रां से, शरीर बन्धन से, अग्नि से या किसी के प्रहार से मृत्यु होने का योग है ।।८।। अथ यानकूपयोमृत्युमाह पदे सूर्ये सुखे भौमे स्यन्दनाश्वादियानतः । खास्ताम्बुगैः क्रमाद् वक्र-चन्द्रमन्दैस्तु कूपतः ॥६॥ सूर्ये पदे दशमस्थे, भौमे सुखे चतुर्थस्थे, स्यन्दनाश्वादिपाततः स्यन्दनाच्छकटरथवाहिन्यादिपाताद् अथवाश्वगजवृषभादिपातात् तस्य मृत्युः। अथवा वक्र चन्द्र मन्दैः कुजेन्दुशनिभिः क्रमात् क्रमेण खास्ताम्बुगैः कर्मसप्तचतुर्थस्थैः कूपतः कूपादिपतितस्य मृत्युः ॥६॥ सूर्य दसवें स्थान में और मंगल चोथे स्थान में हो तो रथ या घोड़े आदि की सवारी से गिर कर जातक की मृत्यु होवे । एवं मंगल दसवें स्थान में, चन्द्रमा सातवें स्थान में और शनि चोथे स्थान में हो तो कूना प्रादि में गिर कर मृत्यु होवे ॥॥ "Aho Shrutgyanam"

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