Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 82
________________ ७० जन्मसमुद्रः पुष्टर्बलहीनस्त्रिभिश्चतुभिः पञ्चभिः षड्भिर्वा, उच्चै लत्रिकोणस्थैर्वा सवित्तः सद्रव्यो राजसमो वा स्याद् भवति । सोऽन्यवंशजातः स नृपो राजा, नहि नहि पुना राजवंशजो राजा । एकेन पुष्टेनोच्चेन द्वाभ्यां स्वस्थानस्थाभ्यां कृत्वा राजवंशजोऽन्यवंशजो वा न राजा स्यात् किन्तु धनी स्यादेव ।।२१।। मूलत्रिकोणसंज्ञामाह विंशतिरंशाः सिहे त्रिकोणमपरं स्वगृहमकर्मस्य । वृषस्यांशद्वयमुच्चं तृतीयोऽशः परमोच्चः, अपरेंऽशास्त्रिकोरणं चन्द्रस्य । मेषे द्वादशांशास्त्रिकोणं शेषा गृहं कुजस्य । कन्यायाश्चतुर्दशांशा उच्चाः, पञ्चदश परमोच्चः, ततः पञ्चांशास्त्रिकोणं शेषा गृहं बुधस्य । धनुषोंऽशा दश त्रिकोणं परेंऽशा: स्वक्षेत्रं गुरोः । तुलायाः पञ्चदशांशास्त्रिकोणं शेषा गृहं शुक्रस्य । कुम्भस्य विशतिस्त्रिशांशा मूलत्रिकोणं शेषा गृहं शनेरिति मूलत्रिकोणसंज्ञा उक्ताः। शुभम्र हैरुच्चैमूलत्रिकोणगैर्वा राजा धर्मात्मा, पापैः पापात्मा कलहादिप्रियः केचिन्मते ।।२१।। जिसकी जन्मकुण्डली में तीन, चार प्रादि ग्रह बलवान होकर उच्च के रहे हों या मूल त्रिकोण में रहे हों तो हीन कुल में जन्म लेने वाला भी राजा होता है। यह राजा के बराबर धनवान होता है। यदि बलवान पांत्र आदि ग्रह उच्च के हों या मूल त्रिकोण में हो तो भी नीच कुल में जन्म लेने पर भी राजा होता है या राजा के बराबर धनवान होता है। एक या दो ग्रह बलवान होकर उच्च के या मूल त्रिकोण में हों तो राजा नहीं किन्तु धनवान होता है। प्रसंगोपात्त मूल त्रिकोण संज्ञा बतलाते हैं सिंह राशि के तीस अंशों में से बीस अंश सूर्य का मूल त्रिकोण है और बाकी के स्वगृह हैं। चन्द्रमा के वृष राशि के दो अंश उच्च, तीसरा अंश परमोच्च है और बाकी के अंश चन्द्रमा के मूल त्रिकोण हैं एवं मंगल, मेष राशि के बारह अंश तक मूल त्रिकोण हैं और बाकी के अंश स्वगृह हैं। बुध के कन्या के चौदह अंश उच्च का और पन्द्रहवां अश परमोच्च का है, उसके बाद पांच अश मूल त्रिकोण और बाकी के अंश स्वगृह हैं। गुरु के धन राशि के पहले दस अंश मूल त्रिकोण है और बाकी के स्वगृह है। शुक्र के-तुला राशि के पहले पन्द्रह अंश मूल त्रिकोण है और बाकी के स्वगृह है । एव शनि के-कुम्भ राशि के बीस अंश मूल त्रिकोण हैं और बाकी के दस अश स्वगृह हैं। शुभ ग्रह उच्च के हों या मूल त्रिकोण में हो तो राजा धर्मात्मा होता है और पाप ग्रह उच्च के या मूल त्रिकोण में हो तो पाप कर्म करने वाला और कलह प्रिय होता है ॥२१॥ अथ राजयोगे सति कदा जातस्य राज्यप्राप्तिभविष्यतीति ज्ञानमाह-.. खस्थो यो वाङ्गगः पुष्टो राज्यदः स्वदशोदये। शत्रुनीचःयातस्य दशायां च्युतिसंश्रयौ ॥२२॥ "Aho Shrutgyanam"

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