Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 86
________________ जन्मसमुद्रः कुम्भाष्टभागे कोणस्थे चन्द्रो जातो नृपो भवेत् । कुम्भलग्नं तु न श्रेष्ठं द्वादशांशोऽस्य कुत्र न ॥ इतिश्रीकाशहृदगच्छीय श्रीसिंहतिलकसूरिशिष्य श्रीनरेन्द्रचन्द्रोपाध्यायकृतायां वृत्तिबेडाया जन्मसमुद्र विवृतौ द्रव्योपार्जनराजयोगलक्षणो नाम पञ्चमः कलोलः। यदि सब क्रूर ग्रह केन्द्र में हों, नीच के या शत्रु राशि के हों और उनको शुभ ग्रह देखते न हों तथा शुभ ग्रह बारहवें, आठवें या छठे स्थान में रहे हों तो राजयोग का भंग हो जाता है। लग्न को कोई ग्रह देखते न हों तो राजयोग का भंग होता है ।२। रवि और क्षीण चन्द्रमा अपने नवमांश में हों, उनको पाप ग्रह देखते हों तो राज्य पद से भ्रष्ट हो जाता है ।३। कितनैक ग्रह उच्च के या मूल त्रिकोण के हो तो राजयोग होता है, परन्तु नीच राशि के हो तो राजयोग का भंग हो जाता है।४। केमद्र म के चन्द्रमा को कोई ग्रह देखते न हो तो राजयोग का भंग होता है ।५। तीन आदि ग्रह नीच राशि के हों और रवी, चन्द्रमा उच्च के न हों तो राजयोग का भंग होता है। सारावली ग्रंथ में कहा है कि-कुम्भ के आठवें नवमांश में रहा हा चन्द्रमा नवें या पांचवें भवन में रहा हो तो राजयोग होता है। कुम्भ लग्न और कुम्भ का द्वादशांश कहीं भी अच्छा नहीं है। इति श्री नरचंद्रोपाध्याय विरचित जन्मसमुद्र के द्रव्योपार्जन राजयोग लक्षण नाम का पञ्चम कल्लोल समाप्त। "Aho Shrutgyanam"

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