Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 125
________________ अष्टम कल्लोल लग्ने जन्मलग्ने तस्माल्लाभे एकादशे पुष्टे पूर्णबलोपेते सति पूर्णायुर्वर्षशतजीवो स वाच्यः । वाथवा तत्पौ तौ लग्नलाभौ पतिः इति तत्पौ लग्नेशे लाभेशे च पुष्टे सति यो जातः स दीर्घायुरुच्यते । अथवा लग्ने लाभे वा पुष्टबलोपेते सति, अथवा तत्पे लग्नेशलाभेशयोरेवास्मिन्मध्यबलेऽपरे पुष्टे सर्वबलोपेते सति मध्यमायुः । पंचाशद्वर्षमितायुः । अथ द्वयोरुभयोर्लग्नलाभयो रेकस्मिन् अल्पवले सति । अथवा लग्नेशलाभेशयोरेकतमेऽल्पबले द्वितीये निर्बले सति हीनमायुः पंचविशति वर्षारिण जीवतीत्यर्थः । अथ द्वयोरपुष्टयोः सर्वबलहीनयोस्तस्मादायुषो हीनं सार्द्ध - द्वादशवर्षारिण यावज्जीवति परं शुभयोगे सबले सति एवं लग्नेशकार्येशयोगे योजनीयम् । एवं लग्नलाभयो रथैतयोर्नाथयोरङ्कतः संख्या वर्षोद्देशप्रमाणमायुषस्तस्य कथनीयम् ॥ २० ॥ लग्न और लाभ स्थान अथवा लग्नपति और लाभ स्थान का पति दोनों बलवान हों तो पूर्ण प्रायुष जानना । इन दोनों में एक बलवान हो तो मध्यम आयुष जानना । एवं लग्नेश और लाभेश इन दोनों में एक अल्प बलवान हो और दूसरा निर्बल हो तो हीन आयुष पच्चीस वर्ष की जानना । अथवा ये दोनों निर्बल हों तो साढ़े बारह वर्ष की आयुष जानना यदि शुभ ग्रह का योग बलवान हो तो। इसी प्रकार लग्नेश श्रौर कार्येश ( दसम स्थान का पति ) के योग से भी प्रायुष का निर्णय करना । लग्नेश और लाभेश के * वर्ष बराबर श्रायुष्य का निर्णय करना । अथ योगान्तर चतुष्टयमाह ११३ केन्द्र ज्येऽपोग्रशुक्रेक्ष्ये वेज्ये लाभे विधौ ज्ञभे । खेऽब्जे सद्दृग्युते वा स दीर्घायुर्वाम्बुगैः शुभैः ॥२१॥ केन्द्र ज्ये केन्द्रगते य इज्यो गुरुस्तत्र केन्द्र गुरौ, अपोग्रशुक्रेक्ष्ये चापगत उग्रः पापो यस्य सोऽपोग्रो निष्पापो यः शुक्रस्तेनेक्ष्ये दृष्टे सति यो जातः स पूर्णायुः । वाथवा इज्ये गुरौ लाभे एकादशस्थे पूर्णे विधौ ज्ञभे च बुधस्य राशौ च सति स दीर्घायुः । वाथवा अब्जे चन्द्रे खे. दशमस्थे' सद्दृग्युतौ च सतां शुभानां दृग् दृष्टि * बृहज्जातक में सूर्यादि ग्रहों का परम श्रायु बतलाया है कि "मय यवन मरिणत्थशक्तिपूर्वेदिवसकरादिषु वत्सराः प्रदिष्टाः । नवतिथिविषयाश्विभूतरुद्रदशसहिता दशभिः स्वतुङ्गमेषु ॥” मय यवन मरिणत्थ और पराशर आदि पूर्वाचार्यों ने सूर्यादि ग्रहों की वर्ष संख्या नीचे लिखे 'अनुसार कहा है -सूर्य का उन्नीस, चन्द्रमा का पच्चीस, मंगल का पन्द्रह, बुध का बारह, गुरु का पन्द्रह, शुक्र का इक्कीस और शनि का बीस वर्ष है । ये वर्ष संख्या ग्रह उच्च राशि के बलवान हो तो समझना । C "Aho Shrutgyanam"

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