Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ षष्ठ कल्लोलः श्रथ वाधिरुग् गुरुगुह्यरुग्यथा स्यादितिज्ञानमाह - अस्ते शुक्रारयोः पापदृष्टयोर्वाधिरु शिशुः । कर्काल्यंशगते चन्द्र सपापे गुह्यरुग् भवेत् ||१०|| शुक्रारयोरस्ते सप्तमस्थयो: पापदृष्टयो रविशनिदृष्टयोः शिशुर्बालको वाधिरुक् वाधिरोगी । पापदृष्टयोरित्युक्तं यत्तत्कथं रविशन्योः पापत्वमुक्तम् कुजः क्वगतः यतो योगमध्ये उक्तः । चन्द्र सपापे कर्काल्यंशगते कर्कवृश्चिकयोरेकतमांशस्थे यत्र तत्र राशौ गुह्यरुक् गुदरोगः ।। १० ।। सातवें स्थान में रहे हुए शुक्र और मङ्गल को पाप ग्रह (रवि और शनि) देखते हों तो बालक को वाधि रोग होवे । एवं किसी भी स्थान में रहा हुम्रा पाप ग्रह युक्त चन्द्रमा कर्क या वृश्चिक के नवमांश में हो तो गुदा रोग होवे ॥१०॥ अथ यथाश्वासादिरोगी स्पादिति ज्ञानमाह मृगेऽर्केऽब्जे यमारान्तः श्वासप्लीहक गुल्मरुक् । कर्केणमीनाजांशस्थे चन्द्र े कुष्टयारयुग्हशि ।। ११ ।। अर्के मृगे मकरस्थे सति, प्रब्जे यमारान्तः यत्र तत्र राशौ शनिकुजयोर्मध्यस्थे च श्वासप्लीहगुल्मरुक्, श्वासः प्रसिद्धः, प्लीहको वामकुक्षिगतो मांसखण्डः. गुल्मो वायुगोलकरूपः । क्षयविद्रधियोगी वात्रयोगे । कर्केरणमीनाजांशस्थे चन्द्रे मकरमीनकर्कमेषाणामेकतमनवांशस्थे सति प्रारयुग्दृशि शनिकुजयोर्मध्यादेकतमेन युक्ते दृष्टे वा यो जातः स कुष्ठी, परं शुभदृष्टे चन्द्रे कण्डूविकारी स्यात् ।। ११।। ७६ जिसकी जन्म कुण्डली में सूर्य मकर राशि का हो और किसी भी राशि में रहा हुआ चन्द्रमा, शनि और मंगल के बीच में हो तो बालक श्वास, प्लीहा, गुल्म क्षय या विद्रधि श्रादि रोगवाला होवे । एवं चन्द्रमा, कर्क, मकर, मीन या मेष के नवमांश में हो, उसके साथ शनि या मंगल हो, या उसकी दृष्टि हो तो कोठ रोगवाला होवे । परन्तु शुभ ग्रह देखते हों तो कम्प रोग वाला होवे ॥११॥ श्रथ कुष्ठियोगद्वयमाह - धन्विपञ्चांगे चन्द्र कुष्टचाराकक्षितान्विते । वाङ्ग कर्केणगोऽलीनामेवोप्रेक्ष्ये त्रिकोणगे ।। १२ ।। चन्द्र धन्विपञ्चांगे धनुषः पञ्चमो योंऽशो नवांशस्तत्र गते श्रारार्कीक्षितान्विते, आर: कुजः, आर्किः शनिः अनयोरेकतमेन युक्ते दृष्टे वा कुष्ठी "Aho Shrutgyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128