Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 117
________________ अष्ठम कल्लोलः १०५ होता है (२९) कीटिका योग में पापी होता है। (३०) नदी योग में राजा और रूपवान होता है। (३१) नद योग में सुखी और अच्छा पुत्र वाला होता है । (३२) गोल योग में दरिद्री, पालसी, मूर्ख, मलिन, दीन-दुःखी, शिल्प काम करने वाला, भ्रमण करने वाला और कार्य में प्रालसी होता है । (३३) युग योग में पाखन्डी. निर्धन, लोगों से बहिष्कृत, पुत्र, मान और धर्म से रहित होता है। (३४) कूल योग में अन्धा, पालसी, निधन, पराक्रमी, हिंसक, बह रोग वाला और क्रोधी होता है। (३५) केदार योग में खेती करने वाला, सब काम करने वाला, सुखी, सत्यवादी और धनवान होता है। (३६) पाश योग में बन्धन, योग्य काम करने वाला, कार्य करने में उत्साह वाला, प्रपंची, बहुत बोलने वाला, अनेक दास वाला और धनी होता है । (३७) दामनी योग में दातार, परोपकारी, पशुओं को पालने वाला, मूर्ख, धनवान और धैर्यवान होता है। (३८) वीणा योग में मित्र के प्राधीन, धनवान, कीति को चाहने वाला, ऐश्वर्य वाला, धर्मात्मा, शास्त्र को जानने वाला, गुणवान, सुन्दर, सुखी और राज मंत्री होता है। (३६) सुनफानफा योग में सुशीलवान, विषय में सुखी, स्वामी प्रसिद्ध वक्ता, धनवान, निरोगी, विषयभोगी और अच्छा वेश धारण करने वाला होता है। (४०) दुरुधरा योग में अनेक नौकर वाला, स्वजनों की उन्नति करने वाला, बुद्धिमान पराक्रमी, गुगगवान, प्रख्यात, सुखी, धनवान, अनेक प्रकार के वाहन वाला, दातार और अच्छे चरित्र वाला होता है । (४१) वेशि योग में प्रसिद्ध वक्ता, पण्डित, उद्यमी, तिर्थी दृष्टि वाला, पागे से मोटा शरीर वाला और सात्विक होता है। वेशि योग करने वाला यदि मङ्गल हो तो युद्ध में प्रसिद्ध और दूसरे के वचनों पर विश्वास रखने वाला होता है। बुध हो तो प्रिय वचन बोलने वाला, सुन्दर शरीर वाला और दूसरों को आज्ञा करने वाला होता है। गुरु हो तो धर्यवान, कीति वाला और वक्ता होता है। शुक्र होतो धनवान, गुणवान, शूरवीर और अच्छा संस्कार वाला होता है। शनि हो तो वणिक वृत्ति वाला, चंचल स्वभाव वाला, दूसरों के धन का अपहरण करने वाला, पुत्र का द्वेषी और निर्लज्ज होता है। (४२ योग में मंद दृष्टि वाला, अव्यवस्थित बोलने वाला, पराभव पाने वाला, परिश्रम करने वाला और अद्ध शरीरी होता है । वोशी योग करने वाला मंगल हो तो मार्ग को नाश करने वाला और पराधीन होता है। बुध हो तो दूसरे के पर तर्क करने वाला, दरिद्र, मृदु, विनयवान और लज्जावान होता है। गुरु हो तो धन संचय करने वाला और मित्र रहित होता है। शुक्र हो तो डरपोक कार्य में उद्विग्न मन वाला, लघु चेष्टा वाला और पराधीन होता है। शनि हो तो परदारा गमन करने वाला, स्वार्थी, धूत और निदित होता है। अन्य शास्त्र में कहा है कि- राशि और अंश रहे हुए ग्रहों के तत्त्वों से सूर्य के बल का विचार करके सब फल कहना चाहिए । (४३) उभयचारी योग में जन्मने वाला बालक सब सहन करने वाला, भाग्यवान, अनेक नौकर वाला, बन्धुओं के प्राधीन, राजा के समान, हमेशा उत्साही, भोगी और पुष्ट होता है । (४४) केमद्रम में जन्मने वाला दास, दुःखी, मलिन, दरिद्री और राजकुल में जन्मने वाला भी निदित पाचरण करने वाला होता है। अन्य ग्रन्थ में कहा है कि-राजकुल में जन्म लेने पर भी केमद्रम योग हो तो स्त्री, अन्न, बन्धु, घर, वस्त्र, मित्र से रहित, दरिद्री, दुःखी, रोगी, हीन, सेवक, धूत और सब लोक में विरुद्ध आचरण करने वाला होता है। "Aho Shrutgyanam"

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