________________
१०४
जन्मसमुद्रः
अब पहले जो रज्जुमुसल प्रादि योग बतलाये हैं, उनका फल कहते हैं:
(१) रज्जु योग में जन्मने वाला जातक दूसरे के गुणों को नहीं सहने वाला, विदेश गमन करने वाला और ईर्ष्यालु होता है। (२) मुसल योग में जन्मने वाला अभिमानी धनी और अनेक कार्य करने में चतुर होता है। (३) जिसकी लग्न कुण्डली में नल योग हो तो स्वरूपवान, गंभीर, धनवान और चतुर होता है। (४) गदा योग हो तो हमेशा धनी, उद्यम करने वाला, साहसी और धन उपार्जन करने में चतुर होता है। (५) माला योग हो तो भोगी, गौरवर्ण वाला और प्रशंसनीय होता है। (६) सर्प योग हो तो बहुत दुःखी, दुष्ट मन वाला और पापी होता है। (७) शकट योग में गाडी आदि वाहन से प्राजीविका चलाने वाला, रोगी और दुष्ट स्त्री का पति होवे । (८) विहग योग में दूत का काम करने वाला, परिभ्रमण करने में होशियार और क्लेश करने वाला होता है । (६) हल योग में खेती करने वाला, दुःखी और पाप करने वाला होता है। (१०) वज़ योग में युवावस्था में दुःखी, बाल्य और वृद्धावस्था में सुखी, सब को प्रिय और युद्ध में बड़ा शूरवीर होता है। (११) यव योग में पराक्रमी और यौवनावस्था में सुखी होता है। (१२) शृङ्गाटक योग में क्रोधी, वृद्धावस्था में दुःखी, दरिद्री, अधिक आशिक, खेती करने वाला और दुःखी होता है। (१३) कमल योग में यशस्वी, गुणवान, दीर्घायु, सुन्दर शरीर वाला और अधिक कीत्तिवाला होता है । (१४) वापी योग में धन प्राप्त करने की बुद्धि वाला, स्थिर लक्ष्मी वाला, सुखी
और कृपण होता है। (१५) प्रद्धेन्दु योग में भाग्यवान, सेनापति, सुन्दर शरीर वाला अपने स्वामी को प्रिय, बलवान, मणियुक्त सुवणं के आभूषण वाला और राज मंत्री होता है। (१६) यूप योग में नियमधारी, प्रात्मा को जानने वाला और धनुर्धर होता है। (१७) शर योग में हिंसा करने वाला, शरीर में बाण की चोट वाला, शिकार के लिए जंगल में रहने वाला, अधिक मांस खाने वाला और निंदनीय काम करने वाला होता है । (१८) शक्ति योग हो तो निर्धन, दुःखी, नीच, आलसी, युद्ध में चतुर, स्थिर मन वाला और अच्छा भाग्य वाला होता है। (१६) दण्ड योग हो तो जातक स्त्री पुत्र से रहित, दरिद्र, सब जनों से तिरस्कृत, दुःखी, कुटुम्बीजनों से निकाला हुमा, नीच और दास होता है। (२०) बेड़ा योग में पानी द्वारा आजीविका करने वाला, लम्बा आयुष वाला, प्रसिद्ध ख्याति वाला, हृष्ट-पुष्ट, लोभी, बलवान और चंचल होता है। (२१) कूट योग में झूठ बोलने वाला, कृपण, धूत, बदमाश, क्र र और पर्वतों में घूमने वाला होता है। (२२) छत्र योग में सुखी, दयावान, दातार, राजा को प्रिय, उत्कृष्ट बुद्धिवाला, प्रथम और अन्त अवस्था में सूखी और कम प्राय वाला होता है । (२३) बाण योग में युवा, मन्द भाग्यवाला, झूठ बोलने वाला, गुप्ति को रखने वाला, चोर, धूत, वनचारी, बाल्य और वृद्धावस्था में सुखी और युद्ध को चाहने वाला होता है। (२४) समुद्र योग में जन्मने वाला, राजा के जैसा भोगी, धनवान, सज्जनों को प्रिय, पुत्र वाला स्थिर मन वाला और पराक्रमी होता है। (२५) चक्र योग में महाराजा, सर्वजन वन्दनीय, तप, ज्ञान प्रादि योग वाला राजपूज्य, रूपवान और सर्वजनमाननीय होता है। (२६) मृग योग में क्रोधी, यशवाला और चंचल होता है। (२७) शरभ योग में तृषा रोग से पीड़ित और धनवान होता है। (२८) गर्ता योग में नाचने वाला, पापी और निर्धन
"Aho Shrutgyanam"