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अष्टम कल्लोलः
शनिभिः कुजबुधगुरुशनिभिः कुजगुरुशुक्रशनिभिर्बुधगुख्शुक्रशनिभिरेवं पञ्चयोगाः। कुजबुधगुरुशुक्रशनिभिस्तत्रगतैरेको भेदः । एवं कारके एकत्रिंशभेदाः । इत्थं सुन फायोगे द्वादशस्थैरेकादिभिम्र हैरेकत्रिशभेदाः । इत्थं दुरुधरायोगभेदाः कल्पनीयाः । चन्द्राद् द्वितीयद्वादशस्थैरेकादिभिन हैं रेवमशीत्यधिकशतं बुद्धया योज्यम् ॥१०॥
चन्द्रमा से दूसरे स्थान में सूर्य को छोड़ कर कोई ग्रह हो तो सुनफा वामका योग, चन्द्रमा से बारहवें स्थान में सूर्य को छोड़ कर दूसरा कोई ग्रह हो तो अनफा नाम का योग,
चन्द्रमा से दूसरे और बारहवें, इन दोनों स्थानों में सूर्य को छोड़ कर कोई ग्रह हो दुरुधरा नाम का योग होता है । चन्द्रमा से दूसरे या बारहवें स्थान में सूर्य हो तो सुनफा आदि योग नहीं बनते, परन्तु सुनफा आदि का योग हो उनको सूर्य भंग भी नहीं करता। इसी प्रकार सूर्य से दूसरे स्थान में चन्द्रमा को छोड़ कर कोई ग्रह हो तो वेशि नाम का योग, सूर्य से बारहवें स्थान में चन्द्रमा को छोड़ कर कोई ग्रह हो तो वोशि नाम का योग, एवं सूर्य से दूसरे और बारहवें स्थान में चन्द्रमा को छोड़ कर कोई ग्रह हो तो उभयचारी नाम का योग होता है ॥१०॥
अथ केमद्रमयोगमाह -
चन्द्रात् केन्द्र पखेटे वाऽब्जेऽङ्गात् केमद्र मोऽस्तगे।
राजा धनी शुभैरेषु वोश्यां केमद्र मेऽधमः ॥११॥ चन्द्रात् केन्द्र केन्द्र चतुष्टयेऽपखेटे ग्रहरहिते सति, वाङ्गाल्लग्नाद् अब्जे चन्द्रऽस्तगे सप्तमस्थे केमद्र मो नाम योगः स्यादिति । अस्य द्विभेदो परं सुनफादियोगद्वयाभावे केवले चन्द्र केमद्रुमः स्यात् । अथवा शास्त्रान्तराच्चन्द्र सर्वग्रहादृष्टे केमद्रुम एष चतुर्थो भेदः । अर्थाच्चन्द्र सर्वग्रहदृष्टे सति केमद्र मो न स्यादिति । चन्द्रात् केन्द्रस्थे ग्रहे केमद्र मभेद: स्यात् । अथैषु सुनफानफादुरुधरावेश्युभयचरीयोगेषु गतैः शुभैर्ग्रहै राजा भूमिपालः स्वामी ठाकुरो वा धनी द्रव्यपतिर्भवेत् । अथ वोशौ केमद्रुमे चाधमः । स्वकुलानुचितकर्मकर्ता नीच इत्यर्थः ॥११॥
चन्द्रमा से चारों केन्द्र में कोई ग्रह न हो।। अथवा लग्न से चन्द्रमा सातवां हो।२। अथवा सुनफा आदि न हो ।३। या चन्द्रमा को कोई ग्रह देखता न हो तो ।४। यह चार प्रकार का केमद्र म योग होता है । सुनफा, अनफा, दुरुधरा, वेशि और उभयचरि इनमें से कोई योग हो तो जातक राजा, भूमिपति, ठाकुर और धनी होता है। परन्तु वोशियोग या केमद्र म योग हो तो जातक दरिद्र अपने कुल के अनुचित नीच काम करने वाला होता है ॥११॥
"Aho Shrutgyanam"