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जन्मसमुद्रः
च 'व्ययार्थस्थयमारयोः' व्ययार्थस्थौ द्वादशधनस्थौ यौ यमारौ शनिकुजौ तयोश्चित्री चित्रकृद् भवति ॥७॥
द्रेष्काण की राशि में रहा हुआ बुध को लग्न में रहा हुअा शनि देखता हो तो चित्र आदि शिल्प कला से अपनी प्राजोविका चलावे एवं चन्द्रमा लग्न में, सूर्य सातवें और शनि और मंगल बारहवें और दूसरे स्थान में हो तो जातक चित्रकार होवे ॥७॥
अथ योगान्तरमाह
कुकर्मास्तगयोरर्कचन्द्रयोः शनिदृष्टयोः ।
मिथो भांशस्थयोः शोषी चैतयोस्तनुदुर्बलः ॥८॥ अर्कचन्द्रयोरस्तगयोः सतोः शनिदृष्टयोः कुकर्मा स्वकुलानुचितधर्मकर्मत्यर्थः । एतयोरर्कचन्द्रयोमिथो भांशस्थयोः परस्परं ये भे राशी तत्रस्थयोः शोषी। अथ परस्परं यौ राश्यंशौ तत्रस्थयोस्तनुदुर्बल: कृशः । यथा रवौ कर्काशे च सति चन्द्र सिंहे सिंहांशे वा यो जातः स शोषी। च शब्दात् समकालं यस्य जन्मनि सिंहे कर्के वा क्रमाच्चन्द्ररवी स्यातां तदा कृशः ।।८।।
सातवें स्थान में रहे हुए सूर्य, चन्द्रमा को शनि देखता हो तो अपने कुल से विरुद्ध कुकर्म करने वाला होता है। सूर्य की राशि पर चन्द्रमा और चन्द्रमा की राशि पर सूर्य ऐसे परस्पर राशि पर हो तो जातक का शरीर शोषी होता है। सूर्य, चन्द्रमा ये दोनों परस्पर राशि के नवमांश में हो तो दुर्बल शरीर वाला होता है ॥८॥
अथ दासीजातविकलाङ्गज्ञानमाह - ... शुक्रेन्त्यस्थे यमांशस्थे दासीजातोऽयमित्यपि ।
चन्द्र खेऽस्ते कुजे सौरे वेशिगे सोऽङ्गवजितः ॥६॥ शुक्रेऽन्त्यस्थे द्वादशस्थे यमांशस्थे च मकरकुम्भयोरेकतमांशस्थे सत्ययं दासीजातोऽथ ग्रन्थान्तरादपि शब्दाच्छुके शन्यंशगते रवीन्द्वोरेकतमस्थे च शनिदृष्टे सति तस्य माता महद्धिककुले दासी आसीत् । चन्द्र खे दशमस्थे कुजेऽस्ते सप्तमस्थे च सौरे शनी वेशिगे वेशियोगस्थे सति यो जातः सोऽङ्गवजितोऽङ्गहीनो भवेत् । अर्काच्चन्द्ररहितैर्ग्रहैद्वितीयस्थैर्वेशिनामा योगः ।।६।।
___ बारह व स्थान में रहा हुआ शुक्र यदि मकर या कुम्भ के नवमांश में हो तो दासी पुत्र कहना । शुक्र, मकर या कुम्भ के नवमांश हो और एक स्थान में रहे हुए सूर्य, चन्द्रमा को शनि देखता हो तो जातक की माता दासी का काम करती है। एवं चन्द्रमा दसवें भवन में मंगल, सातवें भवन में और सूर्य से दूसरे स्थान में शनि हो तो जातक अंगहीन होता है। वेशियोगसूर्य से दूसरे स्थान में चन्द्रमा को छोड़ कर दूसरा कोई ग्रह हो तो वेशियोग होता है ॥
"Aho Shrutgyanam"