Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 93
________________ षष्ठ कल्लोलः लग्न में रहा हुआ सूर्य के साथ राहु हो, तथा शनि और मंगल नवें और पांचवें स्थान में हो तो जातक अन्धा होवे । एवं चन्द्रमा और राहु लग्न में हो, तथा मंगल और शनि नवें और पांचवें स्थान में हो तो जातक पिशाच स्वभाव वाला होवे । यदि लग्न में मेष, वृष या धन राशि हो और उसको पाप ग्रह देखते हो तो जातक खराब दांत वाला होवे ॥ १४॥ अथ दासज्ञानमाह राश्यंशकपतीन्द्वर्क जीवनचक्षपांशगैः । अमित्रांशगतैवैतं जतो दासो भवेदयम् ||१५|| एतै राश्यंशकपतीन्द्वर्क जी वैर्जन्मराशिपतिचन्द्रसूर्यजीवै नचर्क्षपांशगैरात्मीयोच्चराशितः सप्तमो राशिर्नीचराशिस्तस्य ऋक्षं राशि पान्ति ये ग्रहास्तेषामंशा नवांशास्तेषु गतैर्वाथवामीभिरमित्र्यंशगतैः शत्रोरंशस्थैर्यो जातः सोऽयं दासो भवेत् । तद्यथा— यस्य जन्मकाले एको ग्रहो यथोक्तग्रहेभ्यो नीचाधिपांशस्थोऽथामित्रांशगतो भवति स स्वयं जीवितार्थी दासत्वं भजति । यदा द्वावेवंविधौ भवेतां तदा एकेन विक्रीतः सन् येन क्रीतस्तस्य दासः स्यात् । एवंविधा यदा त्रयश्चत्वारो वा भवन्ति तदा सगर्भदासोऽस्ति । दास्या दासस्य वा पुत्रो लोके गृहे जातदास इत्युच्यते ।।१५।। जन्म राशि के या जन्म राशि के नवमांश का स्वामी चन्द्रमा, सूर्य, गुरु ये यदि नीच राशि के स्वामी के नवमांश में हो, या शत्रु राशि के नवमांश में हो तो जातक दास होता है । उपरोक्त चारों ग्रहों में से कोई एक ग्रह नीच राशि के स्वामी के नवमांश में हो या शत्रु राशि के नवमांश में हो तो जातक स्वयं दास का काम करे । एवं दो ग्रह हो तो दूसरे के हाथ से दासपन के लिए बेचा जाये । एवं तीन या चार ग्रह हों तो जन्म से ही दास होवे अर्थात् दास-दासी का पुत्र होवे ॥ १५॥ अथ खल्वाटयोगत्रयं बन्धनं चाह - ८१ पापक्षेऽङ्ग वृषे वास्त्रे खल्वाट: पापवीक्षिते । धीस्वधर्मान्त्यगैः पापैर्लग्नर्क्षाभास्य बन्धता ॥१६॥ पापर्क्षे पापानां राशौ मेषसिंहवृश्चिकमकरकुम्भनामेकतमेऽङ्ग लग्ने पापैर्वीक्षिते सति खल्वाटः शिरस्थखल्लिः । एवं वृषे लग्ने पापदृष्टे सति खल्वाटो भवेत् । वा अस्त्रे धनुषि अङ्गो लग्नस्थे पापदृष्टे स खल्वाटः खलति शिरा भवति । पापैर्धी स्वधर्मान्त्यगैः पुत्रधननवमव्ययानामेकतमस्थैर्यथासम्भवं तैरस्य बन्धता । लग्नर्क्षभा लग्नस्य यादृशो राशिस्तत्सदृशा वाच्याः । लग्नस्य राशि प्रथ "Aho Shrutgyanam"

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