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सप्तम कल्लोल:
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प्रथ गुरुशुक्रशनिराशित्रिशांशफलमाह
वाऽऽगुणाल्येः प्रियाशिल्पधीर्दुष्टा त्वन्यगान्यधृत् ।
दक्षेष्टाढ्याथवा दासी नीचेष्टा पांसुलाऽपसूः ॥४॥ वा शब्दो ग्रहक्रमवाची । प्रादिशब्दाद् गुरोर्मीनधनुषोरेकतमे राशौ तत्रस्थे भौमस्य त्रिंशांशे या जाता आगुणा, आसमस्त्येन गुणो यस्याः सा प्रागुणा बहुगुणेत्यर्थः । शनेर्भागे अल्पेः अल्पः स्तोकः 'इः' कामो यस्या सा अल्पेः अल्पकामा । जीवस्य प्रियागुणवत्त्वात् । एवं बुधस्य शिल्पधीविज्ञानबुद्धिः। शुक्रस्य दुष्टा असती । तुशब्दो ग्रहक्रमवाची । शुक्रस्य वृषतुलयोरेकतमे राशौ तत्रस्थे भौमस्य त्रिंशांशे जाता सा अन्य गा परनररता। शनेरन्यधृत् अन्यं नरं धारयतीत्यन्यधृत् पाणिग्रहणकर्तुरन्यस्य भार्या । जीवस्य दक्षा कलाकुशला। बुधस्येष्टा अभीष्टगीतवाद्यचित्रकर्मादिकौशल्यात् । शुक्रस्याढया बहुद्रव्ययुता। अथवा शब्दः क्रमनिर्देशार्थः । शनेर्मकरकुम्भयोरेकतमे राशौ तत्रस्थे भौमस्य त्रिंशांशे जाता दासी । शनेर्नीचा अधमपुरुषासक्ता। जीवस्येष्टा भर्तृ भक्तिनिरतत्वात् । बुधस्य पांशुला असती । शुक्रस्यापसूः अवगता सूः प्रसूतिर्यस्या वन्ध्येत्यर्थः। एवमन्यस्मिन् राशौ अन्यत्रिंशांशे लग्नं चन्द्रो वा भवेत् तयोर्द्व योर्यो बलवान् स यत्र राशौ यत्र त्रिंशांशे भवति, तस्य लग्नस्य चन्द्रस्य वा फलं वाच्यं बलहीनस्य न वाच्यम् ॥४॥
लग्न या चन्द्रमा, गुरु की मीन राशि या धन राशि में हो और मंगल के त्रिशांश में हो तो बहुत गुण वाली, शनि के त्रिशांश में हो तो कम काम-वासना वाली, गुरु के त्रिशांश में हो तो प्रेम वाली, बुध के त्रिशांश में हो तो अनेक कलाओं में विचक्षण और शुक्र के त्रिशांश में हो तो व्यभिचारिणी होवे । एवं लग्न या चन्द्रमा शुक्र की तुला या वृष राशि में हो और मंगल के त्रिशांश में हो तो पर पुरुष से गमन करने वाली, शनि के त्रिशांश में हो तो दूसरे पुरुष को रखने वाली, गुरु के त्रिशांश में हो तो कलाओं में चतुर, बुध के त्रिशांश में हो तो गीत, वाद्य या चित्र प्रादि कलानों में कुशल और शुक्र के त्रिशांश में हो तो अधिक धन वाली स्त्री होवे । एवं लग्न या चन्द्रमा शनि की मकर या कुम्भ राशि में हो और मंगल के त्रिशांश में हो तो दासी, शनि के त्रिशांश में हो तो नीच पुरुष के साथ गमन करने वाली, गुरु के त्रिशांश में हो तो पति की सेवा करने वाली, बुध के त्रिशांश में हो तो व्यभिचारिणी और शुक्र के त्रिशांश में हो तो वंध्या होवे । त्रिशांश में रहे हए लग्न और चन्द्रमा, इन दोनों में जो बलवान हो उसी से फलादेश कहना, निर्बल का नहीं कहना ॥४॥ अथ स्त्री स्त्रिया सह रति कुर्यादिति ज्ञानमाह
मिथोंऽरास्थौ सितार्को चेदन्योऽन्येक्ष्यौ नवद्रतम् । कुर्यात् सा स्त्रीभिरन्याभिः कुम्भांशे वा सिताङ्गगे ॥५॥
"Aho Shrutgyanam"