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अधुना जातस्वरूपलक्षणो नाम षष्ठः कल्लोलो व्याख्यायते ।
तस्यादिश्लोकेन यत्र जाते सति वंशच्छेदः स्यात् । यत्र जीविति सति स्त्रियः पुत्राणां च मृत्युस्तज्ज्ञानमाह
खास्ताम्बुर्गः क्रमाच्चन्द्र-शुक्रपापैः स्ववंशहा।
स्त्र्यङ्गोऽर्केऽस्ते यमे स्त्रोघ्नः सुते चारे स्वपुत्रहा ॥१॥ चन्द्रशुक्रपापैः क्रमात् पर्यायेण खास्ताम्बुगैः दशमसप्तमचतुर्थस्थैः कृत्वा यो जातः स स्ववंशहा स्वं स्वकीयं वंशं गोत्रं कुलं वा हन्तीति स्ववंशोच्छेदकारी दुर्योधनप्राय इत्यर्थः । अथार्के स्त्र्यङ्ग कन्यालग्नस्थे, यमे शनौ सप्तमस्थे सति स्त्रीनः स्त्रियं हन्ति इति स्त्रीन: । तस्य जीवत एव भार्या म्रियत इत्यर्थः ।।१।
___ यदि जन्मकुन्डली में चन्द्रमा दसवें स्थान में, शुक्र सातवें में और पाप ग्रह चौथे स्थान में हो तो जातक अपने वंश का दुर्योधन की तरह नाश करने वाला होता है । एवं जिस पुरुष की कुन्डली में कन्या राशि के लग्न में सूर्य रहा हो और शनि सातवें स्थान में हो तो स्त्री का विनाश कारक योग है अर्थात् पुरुष जीते हुए उसकी स्त्री मर जाय। एवं कन्या राशि के लग्न में सूर्य हो और पांचवें भवन में मंगल हो तो पुत्र का नाश कारक योग होता है ॥१॥
अथ भार्यामृत्युयोगत्रयमाह
शुक्रात् तुर्याष्टगैः पापस्तभार्या म्रियतेऽग्नितः ।
सिते तन्मध्यगे पातात् पाशान्निःसौम्यदृग्युते ॥२॥ पापैः रविकुजशनिभिः शुक्राद् यथा सम्भवं तुर्याष्टगैः चतुर्थाष्टगैस्तद्भार्या म्रियतेऽग्नितः, परं जीवत एव । अथ सिते शुक्रे तन्मध्यगे पापद्वयमध्यगे पातादुच्चप्रदेशाच्च पतिता सति म्रियते । सिते शुक्र निःसौम्यदृग्युतौ निर्गते सौम्ययो ष्टियुती यत्र स निःसौम्यदृग्युतिः, तत्र यथा शुक्रे सौम्ययोरेकेनादृष्टे एकेनायुक्ते च सति पाशात् । तस्य जीवत एवात्मानं व्यापादयति ।।२।।
जिस पुरुष की कुण्डली में शुक्र से चौथे या आठवें स्थान में पाप ग्रह हो तो स्त्री की अग्नि से मृत्यु होवे ।१। यदि शुक्र दो पाप ग्रह के बीच में हो तो स्त्री की मृत्यु ऊचे प्रदेश में गिरने से होवे ।२। यदि दो पाप ग्रह के बीच में रहा हुअा शुक्र को कोई शुभ ग्रह देखते न हो, या कोई शुभ ग्रह साथ भी न हो तो स्त्री की मृत्यु फांसी से होवे ।३। ॥२॥
"Aho Shrutgyanam'