Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

View full book text
Previous | Next

Page 83
________________ पंचम कल्लोलः राजयोगकर्तृणां ग्रहाणां मध्याद् यो ग्रहः खस्थो दशमस्थो वाथवाङ्गगो जन्मलग्नगः पुष्टो भवति, नस्य जातस्य ग्रहः स्वदशोदये निजदशायां सत्यां राज्यदो राज्यदाता स्यात् । अर्थान्तराद् दशमे लग्ने वा द्वो त्रयो वा भवन्ति तदा तेषां यो बलवान् स स्वदशोदये राज्यदाता । अथ कर्म लग्ने यदि शून्ये तदा जन्मकाले सर्वेषां ग्रहाणां मध्ये यो ग्रहः पुष्टोऽत्तिपुष्ट: स्वदशोदये राज्यदाता । तस्य लब्धराजस्य जन्मकाले शत्रुनीचःजातस्य ग्रहस्य दशायां च्युतिसंश्रयौ बाच्यौ । यथा -शत्रुराशिस्थेन नीचराशिस्थेन वा या दशा दत्ता तत्र बलवति ग्रहे राज्यच्युतिः । तत्र नीचे विबलग्रहे राज्याश्रयः कार्य इति ।।२२।। है राजयोग करने वाले ग्रहों में जो ग्रह दसवें स्थान में या लग्न में रहे हों, उनमें जो बलवान हो उसकी दशा में या अन्तर्दशा में राज्य प्राप्ति या धन की प्राप्ति होवे। यदि लग्न में या दसवें स्थान में कोई ग्रह न हो तो जन्म के समय जो ग्रह सब ग्रहों से अधिक बलवान हो उसकी दशा में या अन्तर्दशा में राज्य प्राप्ति कहना। यदि बलवान ग्रह नीच राशि के या शत्रु राशि के नवांश के हों तो उसकी दशा अन्तर्दशा में राजभ्रष्ट कहना। परन्तु नीच राशि के होने पर भी यदि ग्रह निर्बल हो तो राज्य भ्रष्ट नहीं करता ॥२२ अथ योगान्तरमाह शुक्रेज्यज्ञेऽङ्गगे खेऽर्के यमेऽस्ते भोगवान्नरिः। र केन्द्र : सुभः पापक्षगान्यैः शबरचौरराट् ।।२३॥ शुक्रेज्यज्ञे शुक्रगुरुबुधानां मध्यादेकस्मिन्नङ्गगे लग्नगे, दशमस्थे वार्के, यमे शनौ अस्ते सप्तमस्थे सति अरि स्ति, रैव्यं रैर्द्रव्य यस्यासो अरिद्रव्यहीनोऽपि भोगवान् भवति । अथ केन्द्र शुभक्षैः शुभानां ऋक्षाणि राशयस्तेषु गता येऽन्ये क्रू रास्तैः पापैश्चोरराट् । अर्थवशात् केन्द्रस्था ये शुभराशयस्तत्रस्थैरशुभैः पापानां ये राशयस्तत्र तत्र शुभैश्चोरपतिः । शास्त्रान्तरादर्कोऽधिमित्रस्थश्चन्द्र यदि पश्येत् ततश्चोरपतिः ।।२३॥ शुक्र, गुरु और बुध इनमें से कोई लग्न में हो, सूर्य दसवे स्थान में और शनि सातवें स्थान में हो तो जातक द्रव्य हीन होने पर भी भोगवान होवे । अथवा केन्द्र में शुभ राशियों पर पाप ग्रह और पाप राशियों पर शुभ ग्रह हों तो चोरों का राजा होवे । अन्य शास्त्र में कहा है कि-अधिमित्र के क्षेत्र में रहा हया सूर्य यदि चन्द्रमा को देखता हो तो चोरों का राजा होवे ॥२३॥ अथ विचित्रयोगान्तरमाह स्वाधिमित्रत्रिकोणोच्च-सद्वर्गाक्षियुतोदिताः । लग्नांशराशिपेष्टान्यां राजदा व्यस्तगा न तु ॥२४॥ "Aho Shrutgyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128