Book Title: Janmasamudra Jataka
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Vishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch

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Page 78
________________ UP - जन्मसमुद्रः कर्कमेषराशिस्थाश्च भवन्ति, तदा राजा। वृषलग्ने एको योगः । एवममुना प्रकारेणार्कजे शनौ मूत्तौ लग्ने उच्चे तुलाराशिस्थे सति शेषा यथोक्तस्था भवन्ति तदा राजा । तुला लग्ने द्वितीयो योगः ।।१२।। यदि पूर्ण चन्द्रमा वृष राशि का होकर लग्न में रहा हो, बुध और सूर्य ये दोनों कन्या राशि में, गुरु कर्क राशि में, शुक्र तुला राशि में और मंगल मेष राशि पर हो तो राजयोग होता है। एवं तुला राशि का शनि यदि लग्न में रहा हो, बूध और सूर्य राशि पर, शुक्र तुला राशि में, गुरु कर्क राशि में और मंगल मेष राषि का हो तो राजयोग होता है ॥१२॥ अथान्यद्योगत्रयमाह सारैणाङ्गऽस्त्रगार्केन्द्वोर्वात्र साब्जेऽस्त्रगे रवौ । अजाङ्गऽर्के मदे मन्दे सेन्दौ धर्मे गुरौ विभुः ॥१३॥ आरो मङ्गलस्तेन सह वर्तते यत्तदेणाङ्ग मकरलग्नं तत्र सकुजे मकरलग्ने सति अस्त्रं धनुस्तत्र गतौ यावर्केन्दू तयोः सतो राजा स्यान्मकरलग्ने एको योगः । वाथवात्र सारेणाङ्ग मकरलग्ने मकरलग्ने सति सब्जे सचन्द्रऽस्त्रगेधनूराशिस्थे रवौ च राजा स्यादिति द्वितीयो योगः। अजाङ्ग मेषलग्ने तत्रा: मन्दे शनौ सप्तमस्थानगते सेन्दौ सचन्द्र च सति, धर्मे नवम्स्थे गुरौ जीवे विभुः स्वामीत्येष तृतीयो योगः ।।१३।। मकर राशि का मंगल लग्न में रहा हो, तथा सूर्य और चन्द्रमा दोनों धन राशि में हों तो राजयोग होता है ।। अथवा मकर राशि के मंगल और चन्द्रमा दोनों लग्न में रहे हों और सूर्य धन राशि में हो तो भी राजयोग होता है ।२। अथवा मेष राशि का सूर्य लग्न में रहा हो, तथा शनि और चन्द्रमा दोनों तुला राशि सप्तम स्थान में हों और बृहस्पति धन राशि नवम स्थान में हो तो जातक राजा होता है ॥१३॥ अथ योगद्वयमाह वृषाङ्गडब्जे स्मरे जीवे खे यमेऽर्के सुखे विभुः। व्यरिधर्मान्त्यगैर्वेन्द्रादिकैरेणाङ्गगे शनौ ॥१४॥ __ अब्जे चन्द्र वृषाङ्ग वृषलग्नस्थे, जीवे गुरौ स्मरे सप्तमगते च, यमे शनौ च खे कर्मस्थे, अर्के सुखे चतुर्थस्थे प्रभुः स्यात् ।१। वाथवा एणाङ्गगे मकरलग्नस्थे शनौ, इन्द्वादिकैः क्रमेण व्यरिधर्मान्त्यगैस्त्रिषष्ठधर्मव्ययस्थैश्च राजा । ननु चन्दाद्यैरित्युक्तं शुक्रः क्वगत इत्युच्यते-यथा संख्यात् पञ्चमस्थानाभावात् । यतः शुक्रस्यादित्यपञ्चमत्वादनवकाशः ।।१४।। "Aho Shrutgyanam"

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