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चतुर्थ कल्लोलः
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मेष या वृश्चिक राशि का चन्द्रमा हो और वह दो पाप ग्रह के बीच में हो तो शस्त्र से या अग्नि से मृत्यु योग कहना। दो पाप ग्रह के बीच में रहा हुमा चन्द्रमा मकर या कुम्भ राशि का हो तो रस्सी ( फांसी) से या उच्च प्रदेश से गिरने से या अग्नि से मृत्यु कहना । एवं दो पाप ग्रहों के बीच रहा हुआ चन्द्रमा कन्या राशि का हो तो अस्त्र से रक्त दोष से या शोष रोग से मृसु कहना ॥४॥
प्रथ स्त्रीहेतुकशूलकृतमृत्युज्ञानमाह
मोनाङ्गऽर्के सिते स्वेऽस्ते चन्द्र सोने गृहे स्त्रिये ।
भौमेऽर्के चाम्बुगे मन्दे कर्मस्थे शूलिकाभव : ॥५॥ __ अर्के मीनाङ्ग मोनलग्नस्थे, सिते शुक्रे स्वे धनगे, चन्द्रऽस्ते सप्तमस्थे सोने सपापे सति स्त्रिये स्त्रीहेतवे स्वगेहे मृत्युः। अथ भौमेऽर्के वा अम्बुगे चतुर्थस्थे, मन्दे शनौ कर्मस्थे च शुलिकाभवः शूलीप्रोतस्य मृत्युरित्यर्थः ।।५।।
सूर्य मीन राशि का होकर लग्न में रहा हो तथा शुक्र दूसरे स्थान में और चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ सातवें स्थान में रहा हो तो स्त्री के कारण घर में मृत्यु होवे । एवं मंगल और रवि चौथे स्थान में हों और शनि दसवें स्थान में हो तो शूली से मृत्यु कहना ॥५॥
अथ शलीकृतयोगद्वयमाह
सातिक्षीणेन्दुपापैश्च कोणाङ्गस्थैश्च कारतः ।
तुर्येऽर्के खे कुजे केन्दु-युक्तावेक्ष्येऽस्ति शौलिकः ॥६॥ अतिक्षीणेन्दुना सह वर्त्तते ये पापास्तैः सातिक्षीणेन्दुपापैः कोणाङ्गस्थैः समकाले पंचमनवमलग्नानामेकतमस्थैश्च कारतः चोरितः च शब्दाच्छूलीप्रोतस्य मृत्युः। सचन्द्राणां पापानामेतत् स्थानत्रयं मुक्त्वाऽन्यत्रावस्थितिर्नहि । अथार्के तुर्ये चतुर्थे कुजे खे दशमे केन्दुयुक्तावेक्ष्ये च क्षीणोन्दुना युक्त दृष्टे वा कुजे शौलिको मृत्युरस्ति शूल्याभवः शौलिकः ।।६।।
__ पाप ग्रहों के साथ अति क्षीण चंद्रमा लग्न में पांचवें या नवें स्थान में रहा हो तो चोरी के कारण या शूली से मृत्यु होवे । एवं सूर्य चोथे स्थान में रहा हो और मंगल दसवें स्थान में क्षीण चन्द्रमा के साथ हो या क्षीण चन्द्रमा से देखा जाता हो तो शूली से मृत्यु कहना ॥६॥
अथ काष्ठक्षतकृतमृत्युमाह
सुखेऽर्के खे कुजे मन्दयुक्तेक्ष्ये काष्ठसम्भवः । स्वाम्बुखस्थैः शानीन्द्वारैः क्रमेण क्षतकीटतः ॥७॥
"Aho Shrutgyanam"